Ausadh Darshan Book pdf free download (2007) composed by Acharya Balkrishna ji, is a brief and popular book based on Ayurvedic medicine, which has been published in 15 languages
पुस्तक का नाम | औषध दर्शन |
रचयिता | आचार्य बालकृष्ण |
प्रकाशक | पतंजलि योगपीठ |
प्रकाशक वर्ष | 2007 |
भाषा | हिंदी / इंग्लिश |
आज हम पतंजलि औषध दर्शन बुक को आपके साथ हैं साझा करने वाले हैं यह पुस्तक आयुर्वेद एवं पाकशास्त्र की प्राचीन परंपराओं के अनुसार भारतीय व्यंजनों एवं मसालों का वर्णन संस्कृत पद्यों में करता है। साथ ही इस पुस्तक में उनके स्वास्थ्य वर्धक गुणों का एवं रोग विशेष में उनकी उपयोगिता का निरूपण भी करता है। इसमें तमाम आयुर्वेदिक मसालों एवं व्यंजनों का निर्माण की विधि भी बताई गई है। इस प्रकार से यह प्राचीन शास्त्रीय शैली में लिखी गई एक मौलिक एवं रुचिकर रचना है, जो भोजन पाक कला से जुड़े लोगों एवं गृहणियों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है।
इस पुस्तक (औषध दर्शन) को आचार्य बालकृष्ण जी द्वारा 2007 में प्रकाशित किया गया था, और अब तक यह 15 से अधिक भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी है, 2014 में इसका पुनः संस्करण किया गया।
बालकृष्ण जी द्वारा चिकित्सा में औषधियों का चमत्कारिक असर जिन रोगों पर देखने को मिला उन्होंने उन औषधियों का विवरण औषध दर्शन के रूप में प्रकाशित किया। इस छोटी सी पुस्तक ने आयुर्वेदा के चिकित्सा जगत में क्रांति पैदा कर दी, और इसके साथ साथ चिकित्सा में नई पद्धति को ऊंचाइयों भी प्रदान की। इसकी अब तक 80 लाख से भी अधिक प्रतियां प्रकाशित हो चुकी है, और इस पुस्तक ने आयुर्वेदा चिकित्सा के क्षेत्र में नया कीर्तिमान स्थापित किया है।
आयुर्वेदा क्या है?
भारत में प्राचीन काल से ही औषधियों एवं आयुर्वेदा का इस्तेमाल होता आ रहा है, आयुर्वेदा का शाब्दिक अर्थ है आयु का वेद यानी दीर्घायु का विज्ञान। यह एक प्रकार की श्रेष्ठ चिकित्सा प्रणाली है जो कि भारत के अलावा नेपाल तथा श्रीलंका जैसे देशों में भी प्रचलित है, इसका इस्तेमाल 80% से अधिक लोग भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले करते हैं। आयुर्वेदा का उपयोग भारत में प्राचीन समय से होता आ रहा है। यह भारतीय आयुर्विज्ञान है जो कि विज्ञान की एक शाखा है और जिसका सीधा संबंध मानव शरीर को रोग मुक्त रखने एवं आयु बढ़ाने से है।
प्राचीन धर्म ग्रंथों के अनुसार आयुर्वेदा को देवताओं की चिकित्सा पद्धति माना जाता है, जिसे मानव कल्याण के लिए देवताओं द्वारा धरती पर उपस्थित आचार्यों को दिया गया था। इस शास्त्र के आदि आचार्य अश्विनी कुमार जी को माना जाता है जिन्होंने दक्ष प्रजापति के धड़ में बकरे का सिर जोड़ना जैसी चमत्कारिक चिकित्साएं की थी। बाद में यह विद्या अश्विनी कुमार से इंद्र ने प्राप्त की, इंद्र ने धन्वंतरि को सिखाया। और इसके बाद अलग-अलग संप्रदायों के अनुसार उनकी प्राचीन और पहले आचार्य सुश्रुत ने आयुर्वेदा पड़ा।
आयुर्वेद के आचार्य ये हैं— अश्विनीकुमार, धन्वंतरि, दिवोदास (काशिराज), नकुल, सहदेव, अर्कि, च्यवन, जनक, बुध, जावाल, जाजलि, पैल, करथ, अगस्त्य, अत्रि तथा उनके छः शिष्य (अग्निवेश, भेड़, जतुकर्ण, पराशर, सीरपाणि, हारीत), सुश्रुत और चरक।