Download PDF of देवउठनी एकादशी | Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha, Shubh Muhurat
हिंदू धर्म में प्रत्येक वर्ष 24 एकादशी होती है जब अधिकमास होता है तो एकादशी की संख्या बढ़कर 26 हो जाती हैं । देवउठनी एकादशी व्रत कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाने वाला हिंदू पर्व है l
इस दिन भगवान श्री कृष्ण का पूजन किया जाता है तथा आरती करने के पश्चात प्रसाद वितरित करके ब्राह्मणों को दान दक्षिणा दी जाती है तथा उनकी सेवा की जाती है.
Why It’s Important in Hinduism?
ऐसा कहा जाता है कि कार्तिक माह में जो व्यक्ति प्रभु की कथा को सुनता है या पड़ता है उसे 100 गायों के दान के फल की प्राप्ति होती हैं देवउठनी एकादशी को देवोत्थान एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता हैं ।
ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर में 4 महीने के शयन के बाद जागते हैं इसीलिए भगवान विष्णु के शयनकाल के 4 महीने में किसी भी प्रकार का विवाह आदि मांगलिक कार्य नहीं किए जाते । लेकिन देवउठनी एकादशी के बाद से सभी प्रकार के शुभ और मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं ।
देवउठनी एकादशी ( Dev Uthani Ekadashi) के दिन भगवान विष्णु स्वरूप की पूजा की जाती है ऐसा कहा जाता है कि भगवान विष्णु की पूजा करने से धन संबंधित समस्याएं दूर हो जाती है अगर आप किसी भी प्रकार की धन संकट में है, तो आपकी सभी प्रकार के संकट दूर हो जाते हैं.
साथ ही क्योंकि धन की देवी महालक्ष्मी भगवान विष्णु की अर्धांगिनी है इसीलिए इसी दिन भगवान विष्णु के साथ साथ माता लक्ष्मी का ध्यान भी करना चाहिए तथा संपूर्ण विधि विधान से माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना करनी चाहिए ।
यदि आप Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha Download करना चाहते हैं तो नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर सकते हैं साथ ही आप व्रत कथा भी पढ़ सकते हैं ।
देवउठनी एकादशी व्रत कथा (Dev Uthani Ekadashi Sampoorna Vrat Katha)
एक राजा के राज्य में सभी लोग एकादशी का व्रत रखते थे। प्रजा तथा नौकर-चाकरों से लेकर पशुओं तक को एकादशी के दिन अन्न नहीं दिया जाता था।
एक दिन किसी दूसरे राज्य का एक व्यक्ति राजा के पास आकर बोला- महाराज! कृपा करके मुझे नौकरी पर रख लें। तब राजा ने उसके सामने एक शर्त रखी कि ठीक है, रख लेते हैं। किन्तु रोज तो तुम्हें खाने को सब कुछ मिलेगा, पर एकादशी को अन्न नहीं मिलेगा।
उस व्यक्ति ने उस समय ‘हां’ कर ली, पर एकादशी के दिन जब उसे फलाहार का सामान दिया गया तो वह राजा के सामने जाकर गिड़गिड़ाने लगा- महाराज! इससे मेरा पेट नहीं भरेगा। मैं भूखा ही मर जाऊंगा। मुझे अन्न दे दो।
राजा ने उसे शर्त की बात याद दिलाई, पर वह अन्न छोड़ने को राजी नहीं हुआ, तब राजा ने उसे आटा-दाल-चावल आदि दिए। वह नित्य की तरह नदी पर पहुंचा और स्नान कर भोजन पकाने लगा। जब भोजन बन गया तो वह भगवान को बुलाने लगा- आओ भगवान! भोजन तैयार है।
उसके बुलाने पर पीताम्बर धारण किए भगवान चतुर्भुज रूप में आ पहुंचे तथा प्रेम से उसके साथ भोजन करने लगे। भोजनादि करके भगवान अंतर्धान हो गए तथा वह अपने काम पर चला गया।
पंद्रह दिन बाद अगली एकादशी को वह राजा से कहने लगा कि महाराज, मुझे दुगुना सामान दीजिए। उस दिन तो मैं भूखा ही रह गया। राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि हमारे साथ भगवान भी खाते हैं। इसीलिए हम दोनों के लिए ये सामान पूरा नहीं होता।
यह सुनकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। वह बोला- मैं नहीं मान सकता कि भगवान तुम्हारे साथ खाते हैं। मैं तो इतना व्रत रखता हूं, पूजा करता हूं, पर भगवान ने मुझे कभी दर्शन नहीं दिए।
राजा की बात सुनकर वह बोला- महाराज! यदि विश्वास न हो तो साथ चलकर देख लें। राजा एक पेड़ के पीछे छिपकर बैठ गया। उस व्यक्ति ने भोजन बनाया तथा भगवान को शाम तक पुकारता रहा, परंतु भगवान न आए। अंत में उसने कहा- हे भगवान! यदि आप नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर प्राण त्याग दूंगा।
लेकिन भगवान नहीं आए, तब वह प्राण त्यागने के उद्देश्य से नदी की तरफ बढ़ा। प्राण त्यागने का उसका दृढ़ इरादा जान शीघ्र ही भगवान ने प्रकट होकर उसे रोक लिया और साथ बैठकर भोजन करने लगे। खा-पीकर वे उसे अपने विमान में बिठाकर अपने धाम ले गए।
यह देख राजा ने सोचा कि व्रत-उपवास से तब तक कोई फायदा नहीं होता, जब तक मन शुद्ध न हो। इससे राजा को ज्ञान मिला। वह भी मन से व्रत-उपवास करने लगा और अंत में स्वर्ग को प्राप्त हुआ।
शुभ मुहूर्त (Shubh Muhurat)
पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 22 नवंबर को देर रात 11 बजकर 03 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन यानी 23 नवंबर को 09 बजकर 01 मिनट पर समाप्त होगी। इसी समय से द्वादशी तिथि शुरू होगी। इसके लिए देव उठनी एकादशी 23 नवंबर को मनाई जाएगी। वहीं, तुलसी विवाह 24 नवंबर को मनाया जाएगा।