दुर्गा अष्टमी व्रत कथा Durga Ashtami Vrat Katha PDF

दुर्गा अष्टमी व्रत कथा Durga Ashtami Vrat Ki Katha PDF Download

नमस्कार दोस्तों आज मैं आप सभी को Durga Ashtami Vrat Katha PDF प्रदान करने वाला हूं जिसे आप नीचे दिए गए लिंक से डाउनलोड कर सकते हैं साथ ही पीडीएफ को ओपन करके आप संपूर्ण व्रत कथा पढ़ भी सकते हैं

दुर्गा अष्टमी का क्या महत्व है?

भारत में दुर्गा अष्टमी को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है इस दिन नवरात्रि की आठवें देवी शक्ति मां महागौरी Mahagauri की पूजा आराधना की जाती है कहां जाता है जो व्यक्ति वहां गौरी की पूजा करता है उसके घर में सुख समृद्धि सदैव बनी रहती है इस दिन गुलाबी रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है.

साथ ही मान्यताओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि अष्टमी के दिन मां दुर्गा अपनी शक्तियों को प्रकट करती है इसीलिए कुछ लोग इस दिन एक विशेष प्रकार की पूजा करते हैं जिसे चामुंडा की संख्या पूजा के नाम से जाना जाता है

दुर्गा अष्टमी के दिन कन्या पूजन का महत्व

दुर्गा अष्टमी के दिन ही अन्नकूट पूजा यानी कन्या पूजन का भी विधान बताया गया है अष्टमी के दिन कन्या पूजन करना सबसे अधिक श्रेष्ठ माना गया है इस पूजन में नौ कन्याओं को भोजन कराया जाता है.

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यदि 9 कन्याएं ना मिले तो दो कन्याओं को भोजन करा कर काम चल जाता है उसके उपरांत आपको सभी कन्याओं को दान दक्षिणा देनी चाहिए ऐसा करने से महागौरी आप पर प्रसन्न होती है और आप पर महागौरी की कृपा सदैव बनी रहेगी

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दुर्गा अष्टमी व्रत क्यों मनायी जाता है ? (Durga Ashtami Vrat Katha)

दुर्गा अष्टमी व्रत कथा के अनुसार देवी सती ने पार्वती रूप में भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। एक बार भगवान भोलेनाथ ने पार्वती जी को देखकर कुछ कह दिया जिससे देवी का मन आहत हो गया और पार्वती जी तपस्या में लीन हो गईं।

इस प्रकार वर्षों तक कठोर तपस्या करने के बाद जब पार्वती नहीं आईं तो उनको खोजते हुवे भगवान शिव उनके पास पहुंचे। वहां पहुंचकर मां पार्वती को देखकर भगवान शिव आश्चर्यचकित रह गए।

पार्वती जी का रंग अत्यंत ओझ पूर्ण था, उनकी छटा चांदनी के समान श्वेत, कुंध के फूल के समान धवल दिखाई पड़ रही थी, उनके वस्त्र और आभूषण से प्रसन्न हो कर भगवान शिव ने देवी उमा को गौर वर्ण का वरदान दिया।

दूसरी कथा के अनुसार भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी जिससे उनका शरीर काला पड़ गया। देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान उन्हें स्वीकार कर लेते हैं और शिव जी उनके शरीर को गंगाजल से धोते हैं तब देवी अत्यंत गौर वर्ण की हो जाती हैं और तभी से इनका नाम गौरी पड़ा था।

महागौरी रूप में देवी करुनामय स्नेहमय शांत और मृदंग दिखती हैं। देवी के इस रूप की प्रार्थना करते हेतु देव और ऋषिगण कहते हैं, “सर्वमंगल मांगलये शिवे सर्वाध्य साधिके शरन्य अम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते।”

एक कथा ये भी प्रचलित है कि एक सिंह काफी भूखा था। जब वो भोजन की तलाश में वहां पहुंचा जहां देवी उमा तपस्या कर रही थीं। देवी को देखकर सिंह की भूख और बढ़ गई। परन्तु वह देवी की तपस्या से उठने का इंतजार करते हुए वहीं बैठ गया। इस इंतजार में वह काफी कमजोर हो गया।

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देवी जब तप से उठीं तो सिंह की दशा देखकर उन्हें उस पर दया आ गई और मां उसे अपनी सवारी बना लेती हैं, क्योंकि इस प्रकार से उसने भी तपस्या की थी। इसलिए देवी गौरी का वाहन बैल भी है और सिंह भी है।

दुर्गा अष्टमी तिथि (Durga Ashtami Date) –

इस वर्ष शरद नवरात्रि की अष्टमी यानी दुर्गा अष्टमी 13 अक्टूबर को होगी ऐसे में दुर्गा अष्टमी व्रत 13 अक्टूबर को रखना उत्तम होगा.

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