Durga Saptashloki PDF: It is the prayer of Maa Durga. The whole essence of Saptashati is contained in these seven verses. Durga Saptashloki is considered to be the most important text during Navratri Durga Puja.
The ritual of Durga Saptashati begins with Saptashloki Durga. Saptashloki Durga begins with Shiva Uvacha. After the Saptashloki Durga, the Durga Ashtottara Shatanam Stotra is recited.
दुर्गा सप्तशती के कर्मकांड की शुरुआत सप्तश्लोकी दुर्गा से होती है। सप्तश्लोकी दुर्गा की शुरुआत शिव उवाच से होती है। सप्तश्लोकी दुर्गा के बाद दुर्गा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का पाठ भी किया जाता है।
सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र की रचना साक्षात भगवान महादेव ने स्वयं की थी। मान्यता है कि इस स्तोत्र का नवरात्रि में पाठ करने से सभी इच्छाओं की पूर्ति हो जाती है। देवी ने भगवान शिव को बताया कि सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र भक्तों की सभी इच्छाओं को पूरा करने और जीवन के सभी पहलुओं में म्हारो छाया तक पहुंचाने में मदद करेगा।
नौ देवियाँ: शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री
॥ अथ सप्तश्लोकी दुर्गा ॥
॥ शिव उवाच ॥
देवि त्वं भक्तसुलभेसर्वकार्यविधायिनी।
कलौ हि कार्यसिद्ध्यर्थमुपायंब्रूहि यत्नतः॥
॥ देव्युवाच ॥
श्रृणु देव प्रवक्ष्यामिकलौ सर्वेष्टसाधनम्।
मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते॥
॥ विनियोगः ॥
ॐ अस्य श्रीदुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्यनारायण ऋषिः,
अनुष्टुप् छन्दः,श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः,
श्रीदुर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्लोकीदुर्गापाठे विनियोगः।
ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसिदेवी भगवती हि सा।
बलादाकृष्य मोहायमहामाया प्रयच्छति॥1॥
दुर्गे स्मृताहरसि भीतिमशेषजन्तोः
स्वस्थैः स्मृतामतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्यदुःखभयहारिणिका त्वदन्या
सर्वोपकारकरणायसदार्द्रचित्ता॥2॥
सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥3॥
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥4॥
सर्वस्वरूपे सर्वेशेसर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गेदेवि नमोऽस्तु ते॥5॥
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रूष्टातु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणांत्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति॥6॥
सर्वाबाधाप्रशमनंत्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वयाकार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्॥7॥
॥ इति श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा सम्पूर्णा ॥
सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ का अर्थ
शिवजी बोले: हे देवी! तुम अपने भक्तों के लिए सुलभ हो और सभी कार्यों का विधान करने वाली हो। कलयुग में मुझे कामनाओं की सिद्धि हेतु कोई उपाय हो तो अपनी वाणी द्वारा सम्यक रूप से व्यक्त करो।
देवी ने कहा: हे प्रभु सुनो! आपका मेरे ऊपर बहुत स्नेह है, मैं आपको कलयुग में समस्त कामनाओं की सिद्धि करने वाला साधन बताऊंगी सुनो! उसका नाम है ‘अम्बास्तुति’।
विनियोग: इस दुर्गा सप्तशती स्तोत्र मंत्र के नारायण ऋषि हैं। अनुष्टुप छंद है, श्री महाकाली महालक्ष्मी और महासरस्वती देवता है, श्री दुर्गा की प्रसन्नता के लिए सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ में इसका विनियोग किया जाता है।
- वे भगवती महामाया देवी ज्ञानियोंके भी चित्त को बलपूर्वक खींचकर मोह में दाल देती हैं।
- माँ दुर्गे! आप पर सब प्राणियों का भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरुषों द्वारा चिंतन करने पर उन्हें कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हैं। दुःख, दरिद्रता और भय हरने वाली देवि! आपके सिवा दूसरी कौन है, जिसका चित्त सबका उपकार करने के लिए सदा ही दयार्द्र रहता हो।
- नारायणी! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमयी हो। कल्याणदायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थों को सिद्ध करने वाली, शरणागतवत्सला, तीन नेत्रोंवाली एवं गौरी हो। तुम्हे नमस्कार है।
- शरण में आये हुए दिनों एवं पीड़ितों की रक्षा में संलग्न रहने वाली तथा सबकी पीड़ा दूर करने वाली नारायणी देवि! तुम्हें नमस्कार है।
- सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी, तथा सब प्रकार की शक्तियों से सम्पन्न दिव्यरूपा दुर्गे देवि! सब भयों से हमारी रक्षा करो; तुम्हें नमस्कार है।
- देवि! तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके हैं, उन पर विपात्ति तो आती ही नहीं। तुम्हारी शरण में गए हुए मनुष्य दूसरों को शरण देने वाले हो जाते हैं।
- सर्वेश्वरी! तुम इसी प्रकार तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शांत करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो।
अगर आप चाहे तो इस स्तोत्र का पाठ प्रतिदिन कर सकते हो, माना जाता है कि प्रतिदिन सप्तश्लोकी दुर्गा का 9 बार पाठ करने से शीघ्र कामना पूर्ण होती है। आपको इस बात का ध्यान रखना बहुत जरूरी है अगर आप इस स्तोत्र का एक से अधिक बार पाठ करते हो तो आपको इसका विनियोग सिर्फ एक ही बार करना है 1 दिन में। किंतु दूसरे दिन वैसे ही फिर कर पाठ का आरंभ करें।