गणाधिप संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा, पूजा विधि | Ganadhipa Sankashti Chaturthi Vrat Katha, Puja Vidhi PDF

नमस्कार दोस्तों! इस आर्टिकल में मैं आपको Ganadhipa Sankashti Chaturthi व्रत कथा और पूजा विधि के बारे में जानकारी साझा कर रहा हूं। आप इस लेख को पढ़ सकते हैं और साथ ही इसका PDF भी डाउनलोड कर सकते हैं।

गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का महत्व

मार्गशीर्ष महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति पूरी श्रद्धा और भक्ति से गणपति की पूजा करता है, उसे जीवन की समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है।

गणाधिप संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा

एक बार, पांडवों के राजा युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से इस दिन के व्रत का महत्व बताने का अनुरोध किया। भगवान कृष्ण ने रामायण से जुड़ी एक महत्वपूर्ण कथा सुनाई:

कथा में, अयोध्या के राजा दशरथ ने गलती से एक गरीब और दृष्टिहीन जोड़े के इकलौते पुत्र, श्रवण कुमार को मार डाला। अपने बेटे की मृत्यु के बाद, बूढ़े जोड़े ने राजा को श्राप दिया कि वह भी अपने बेटे से अलग होने का दुख सहन करेगा। यह श्राप सच हो गया, जब वर्षों बाद राजा दशरथ को अपने पुत्र राम को कैकेयी की आज्ञा का सम्मान करने के लिए अपने राज्य से बाहर भेजना पड़ा।

एक दिन, लंका के राक्षस राजा रावण ने सीता का अपहरण किया। जब राम और लक्ष्मण सीता की खोज में निकले, तो उन्होंने सुग्रीव और उनके मंत्री हनुमान से मुलाकात की। सुग्रीव की सेना ने सीता की खोज शुरू की, और उन्होंने संपति (जटायु के बड़े भाई) से जानकारी प्राप्त की। संपति ने बताया कि समुद्र के पार रावण के राज्य के बारे में हनुमान ही जा सकते हैं।

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हालांकि, जब हनुमान ने सोचा कि यह विशाल कार्य कैसे किया जा सकता है, तब संपति ने उन्हें संकष्टी चतुर्थी व्रत का पालन करने के लिए कहा। हनुमान ने इस व्रत को भक्ति के साथ किया और समुद्र पार करने में सफल रहे। इस प्रकार, रावण के पतन और श्री राम की विजय की कहानी शुरू हुई। इसलिए, भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को भी इस व्रत का पालन करने के लिए कहा ताकि वे अपने दुश्मनों को हरा सकें।

गणाधिप संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि

गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखने वाले भक्तों को निम्नलिखित विधियों का पालन करना चाहिए:

  1. ब्रह्म मुहूर्त में उठें: व्रत रखने वाले व्यक्ति को सुबह स्नान करना चाहिए और पवित्र हो जाना चाहिए।
  2. स्वच्छ वस्त्र पहनें: स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनना चाहिए।
  3. व्रत का संकल्प: पूजा स्थल पर जाकर व्रत का संकल्प लें।
  4. विशेष आहार से परहेज: इस दिन चावल, गेहूं और दाल का सेवन नहीं करना चाहिए।
  5. ब्रह्मचर्य का पालन: व्रत के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक है।
  6. तामसिक भोजन से दूर रहें: मांस और मदिरा का सेवन वर्जित है।
  7. क्रोध पर नियंत्रण: अपने क्रोध पर काबू रखें और संयम बनाए रखें।
  8. गणेश मंत्र का जाप: भगवान गणेश जी के मंत्रों का जाप करें और श्री गणेश स्त्रोत का पाठ करें।
  9. पारण विधि: गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का पारण चंद्रोदय के पश्चात अर्घ्य देकर ही करें।

निष्कर्ष

गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का व्रत व्यक्ति को मानसिक और आध्यात्मिक दृष्टि से मजबूती प्रदान करता है। इस दिन की पूजा से सुख-शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

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