नमस्कार दोस्तों, आज मैं आपके साथ शेयर करने वाला हूं श्री हनुमान जी का अत्यंत चमत्कारी स्तोत्र हनुमान वडवानल स्तोत्र जिसकी रचना विभीषण द्वारा की गई थी। माना जाता है कि इंदिरा आदि देवताओं के बाद धरती पर सबसे पहले विभीषण ने हनुमान जी की शरण लेकर उनकी स्तुति की थी। और विभीषण को भी हनुमान जी की तरह ही चिरंजीवी होने का वरदान मिला है। विभीषण जी ने बजरंगबली की स्थिति में एक बहुत ही चमत्कारी स्तोत्र की रचना की है जिसे Hanuman Vadvanal Stotra pdf भी कहते हैं।
यह स्तोत्र हनुमान जी की उपासना के लिए एक महामंत्र है। इस स्तोत्र का रोजाना पाठ करने से जब्ती को भय से मुक्ति तथा व्यक्ति सुरक्षित महसूस करता है तथा उसकी सभी इच्छाएं पूरी हो जाती है।
व्यक्ति सुरक्षित तथा भय से भी मुक्त महसूस करता है साथ ही उसकी इच्छा की भी पूर्ति होती है। इस स्तोत्र में बजरंगबली जी के गुणों की तथा शक्तियों की प्रशंसा शामिल है। इसके पश्चात हनुमान जी से अनुरोध किया गया है कि सभी रोग, खराब स्वास्थ्य एवं परेशानियां दूर करें और सभी बुरी आदतों से मुक्ति दिलाने का अनुरोध किया गया है।
तथा स्तोत्र के अंत में हनुमान जी से आशीर्वाद तथा जीवन में सफलता स्वास्थ्य एवं इच्छित वर देने का अनुरोध भी किया गया है। इस स्तोत्र को बहुत ही शुभ तथा प्रबल माना जाता है एवं यदि कोई व्यक्ति हनुमान वडवानल स्तोत्र का पाठ करता है तो उसकी सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं।
हनुमान वडवानल स्तोत्र
विनियोग
ॐ अस्य श्री हनुमान् वडवानल-स्तोत्र-मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषिः,
श्रीहनुमान् वडवानल देवता, ह्रां बीजम्, ह्रीं शक्तिं, सौं कीलकं,
मम समस्त विघ्न-दोष-निवारणार्थे, सर्व-शत्रुक्षयार्थे
सकल-राज-कुल-संमोहनार्थे, मम समस्त-रोग-प्रशमनार्थम्
आयुरारोग्यैश्वर्याऽभिवृद्धयर्थं समस्त-पाप-क्षयार्थं
श्रीसीतारामचन्द्र-प्रीत्यर्थं च हनुमद् वडवानल-स्तोत्र जपमहं करिष्ये।
ध्यान
मनोजवं मारुत-तुल्य-वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।
वातात्मजं वानर-यूथ-मुख्यं श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये।।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते प्रकट-पराक्रम
सकल-दिङ्मण्डल-यशोवितान-धवलीकृत-जगत-त्रितय
वज्र-देह रुद्रावतार लंकापुरीदहय उमा-अर्गल-मंत्र
उदधि-बंधन दशशिरः कृतान्तक सीताश्वसन वायु-पुत्र
अञ्जनी-गर्भ-सम्भूत श्रीराम-लक्ष्मणानन्दकर कपि-सैन्य-प्राकार
सुग्रीव-साह्यकरण पर्वतोत्पाटन कुमार-ब्रह्मचारिन् गंभीरनाद
सर्व-पाप-ग्रह-वारण-सर्व-ज्वरोच्चाटन डाकिनी-शाकिनी-विध्वंसन
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महावीर-वीराय सर्व-दुःख निवारणाय
ग्रह-मण्डल सर्व-भूत-मण्डल सर्व-पिशाच-मण्डलोच्चाटन
भूत-ज्वर-एकाहिक-ज्वर, द्वयाहिक-ज्वर, त्र्याहिक-ज्वर
चातुर्थिक-ज्वर, संताप-ज्वर, विषम-ज्वर, ताप-ज्वर,
माहेश्वर-वैष्णव-ज्वरान् छिन्दि-छिन्दि यक्ष ब्रह्म-राक्षस
भूत-प्रेत-पिशाचान् उच्चाटय-उच्चाटय स्वाहा।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः आं हां हां हां हां
ॐ सौं एहि एहि ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ हं
ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते श्रवण-चक्षुर्भूतानां
शाकिनी डाकिनीनां विषम-दुष्टानां सर्व-विषं हर हर
आकाश-भुवनं भेदय भेदय छेदय छेदय मारय मारय
शोषय शोषय मोहय मोहय ज्वालय ज्वालय
प्रहारय प्रहारय शकल-मायां भेदय भेदय स्वाहा।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते सर्व-ग्रहोच्चाटन
परबलं क्षोभय क्षोभय सकल-बंधन मोक्षणं कुर-कुरु
शिरः-शूल गुल्म-शूल सर्व-शूलान्निर्मूलय निर्मूलय
नागपाशानन्त-वासुकि-तक्षक-कर्कोटकालियान्
यक्ष-कुल-जगत-रात्रिञ्चर-दिवाचर-सर्पान्निर्विषं कुरु-कुरु स्वाहा।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते
राजभय चोरभय पर-मन्त्र-पर-यन्त्र-पर-तन्त्र
पर-विद्याश्छेदय छेदय सर्व-शत्रून्नासय
नाशय असाध्यं साधय साधय हुं फट् स्वाहा।
।। इति विभीषणकृतं हनुमद् वडवानल स्तोत्रं ।।