Download PDF of Indira Ekadashi Vrat Katha व्रत कथा Puja Vidhi, Date in Hindi
हिंदू धर्म में इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi) को सबसे सर्वश्रेष्ठ व्रतों में से एक बताया गया है हिंदू पंचांग के अनुसार यह व्रत अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को आता है इस व्रत को इंद्राणी एकादशी indrani ekadashi के नाम से भी जाना जाता है इंदिरा एकादशी पर भगवान विष्णु जी के अवतार भगवान शालिग्राम जी की पूजा की जाती है इसीलिए यह व्रत बहुत ही खास हो जाता है।
क्योंकि यह व्रत पितृ पक्ष में पड़ता है इसीलिए कहा जाता है कि इस दिन व्रत करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। सभी एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होते हैं तथा इन सभी एकादशी के व्रतों का अलग अलग महत्व होता है तथा कहा जाता है कि जो व्यक्ति इन सभी एकादशी का व्रत रखता है उसे सभी प्रकार के सुख मिलते हैं तथा वैकुंठधाम को प्राप्त करता है।
इंदिरा एकादशी व्रत कथा (Vrat Katha)
प्राचीनकाल में सतयुग के समय में महिष्मति नाम की एक नगरी में इंद्रसेन नाम का एक प्रतापी राजा धर्मपूर्वक अपनी प्रजा का पालन करते हुए शासन करता था। वह राजा पुत्र, पौत्र और धन आदि से संपन्न और विष्णु का परम भक्त था। एक दिन जब राजा सुखपूर्वक अपनी सभा में बैठा था तो आकाश मार्ग से महर्षि नारद उतरकर उसकी सभा में आए। राजा उन्हें देखते ही हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और विधिपूर्वक आसन व अर्घ्य दिया। सुख से बैठकर मुनि ने राजा से पूछा कि हे राजन! आपके सातों अंग कुशलपूर्वक तो हैं? तुम्हारी बुद्धि धर्म में और तुम्हारा मन विष्णु भक्ति में तो रहता है? देवर्षि नारद की ऐसी बातें सुनकर राजा ने कहा- हे महर्षि! आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल है तथा मेरे यहाँ यज्ञ कर्मादि सुकृत हो रहे हैं। आप कृपा करके अपने आगमन का कारण कहिए। तब ऋषि कहने लगे कि हे राजन! आप आश्चर्य देने वाले मेरे वचनों को सुनो।
मैं एक समय ब्रह्मलोक से यमलोक को गया, वहाँ श्रद्धापूर्वक यमराज से पूजित होकर मैंने धर्मशील और सत्यवान धर्मराज की प्रशंसा की। उसी यमराज की सभा में महान ज्ञानी और धर्मात्मा तुम्हारे पिता को एकादशी का व्रत भंग होने के कारण देखा। उन्होंने संदेशा दिया सो मैं तुम्हें कहता हूँ। उन्होंने कहा कि पूर्व जन्म में कोई विघ्न हो जाने के कारण मैं यमराज के निकट रह रहा हूँ, सो हे पुत्र यदि तुम आश्विन कृष्णा इंदिरा एकादशी का व्रत मेरे निमित्त करो तो मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है।
इतना सुनकर राजा कहने लगा कि हे महर्षि आप इस व्रत की विधि मुझसे कहिए। नारदजी कहने लगे- आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन प्रात:काल श्रद्धापूर्वक स्नानादि से निवृत्त होकर पुन: दोपहर को नदी आदि में जाकर स्नान करें। फिर श्रद्धापूर्व पितरों का श्राद्ध करें और एक बार भोजन करें। प्रात:काल होने पर एकादशी के दिन दातून आदि करके स्नान करें, फिर व्रत के नियमों को भक्तिपूर्वक ग्रहण करता हुआ प्रतिज्ञा करें कि ‘मैं आज संपूर्ण भोगों को त्याग कर निराहार एकादशी का व्रत करूँगा।
हे अच्युत! हे पुंडरीकाक्ष! मैं आपकी शरण हूँ, आप मेरी रक्षा कीजिए, इस प्रकार नियमपूर्वक शालिग्राम की मूर्ति के आगे विधिपूर्वक श्राद्ध करके योग्य ब्राह्मणों को फलाहार का भोजन कराएँ और दक्षिणा दें। पितरों के श्राद्ध से जो बच जाए उसको सूँघकर गौ को दें तथा ध़ूप, दीप, गंध, पुष्प, नैवेद्य आदि सब सामग्री से ऋषिकेश भगवान का पूजन करें। रात में भगवान के निकट जागरण करें। इसके पश्चात द्वादशी के दिन प्रात:काल होने पर भगवान का पूजन करके ब्राह्मणों को भोजन कराएँ। भाई-बंधुओं, स्त्री और पुत्र सहित आप भी मौन होकर भोजन करें। नारदजी कहने लगे कि हे राजन! इस विधि से यदि तुम आलस्य रहित होकर इस एकादशी का व्रत करोगे तो तुम्हारे पिता अवश्य ही स्वर्गलोक को जाएँगे। इतना कहकर नारदजी अंतर्ध्यान हो गए। नारदजी के कथनानुसार राजा द्वारा अपने बाँधवों तथा दासों सहित व्रत करने से आकाश से पुष्पवर्षा हुई और उस राजा का पिता गरुड़ पर चढ़कर विष्णुलोक को गया। राजा इंद्रसेन भी एकादशी के व्रत के प्रभाव से निष्कंटक राज्य करके अंत में अपने पुत्र को सिंहासन पर बैठाकर स्वर्गलोक को गया।
हे युधिष्ठिर! यह इंदिरा एकादशी के व्रत का माहात्म्य मैंने तुमसे कहा। इसके पढ़ने और सुनने से मनुष्य सब पापों से छूट जाते हैं और सब प्रकार के भोगों को भोगकर बैकुंठ को प्राप्त होते हैं। इति शुभम्
इंदिरा एकादशी व्रत के महत्वपूर्ण नियम
- इंदिरा एकादशी व्रत के पिछले वाले दिन यानि दशमी को आपको सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए।
- इंदिरा एकादशी के व्रत में किसी भी प्रकार का अन्य ग्रहण नहीं किया जाता है मुख्य रूप से चावल का सेवन पूर्ण रूप से वर्जित होता है साथ ही साथ जो व्यक्ति इस एकादशी के व्रत को नहीं रखता है उन्हें भी चावल का त्याग कर देना चाहिए।
- एकादशी व्रत में आप जितना कम हो सके उतना कम आपको बोलना चाहिए ताकि आपके मुंह से किसी भी प्रकार का अपशब्द ना निकले।
- एकादशी व्रत को अगले दिन यानि द्वादशी को सूर्योदय के बाद पूजा पाठ करने और ब्राह्मण को भोजन करवाने के बाद पूर्ण करना चाहिए साथ ही साथ यह बात ध्यान में रखें कि व्रत का पारण द्वादशी समाप्त होने से पहले और हरि वासर समाप्त होने के बाद करें।
- द्वादशी समाप्त होने के बाद एकादशी व्रत का पारण करना पाप माना जाता है।
- इंदिरा एकादशी व्रत के समय सदैव ईश्वर का स्मरण करना चाहिए।
इंदिरा एकादशी व्रत पूजा विधि (Indira Ekadashi Puja Vidhi)
- इंदिरा एकादशी व्रत पूजा दशमी तिथि से शुरू हो जाती है
- दशमी तिथि से ही घर में पूजा पाठ करें तथा दोपहर के समय नदी में तर्पण कार्य करें
- दशमी तिथि को सूर्यास्त से पहले ही भोजन कर ले
- एकादशी तिथि को सुबह जल्दी उठकर सबसे पहले स्नान कर लेना चाहिए
- इसके बाद पितरों को याद करते हुए भगवान विष्णु की प्रतिमा पर गंगाजल पुष्प चढ़ाएं तथा इसके उपरांत आरती करें
- क्योंकि भगवान विष्णु को तुलसी बहुत प्रिय है इसीलिए भोग में तुलसी के पत्तों का प्रयोग जरूर करें
- साथ ही साथ आप विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें
- उसके उपरांत श्राद्ध विधि करें तथा ब्राह्मणों को भोजन करा देना चाहिए
- इसके पश्चात गाय कौवे और कुत्ते को भोजन कराना चाहिए
- इसके अगले दिन द्वादशी तिथि को भी पूजन के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए तथा उसके बाद ब्राह्मणों को दान दक्षिणा दीजिए इसके बाद परिवार के साथ मिलकर भोजन करें
इंदिरा एकादशी की तिथि
इंदिरा एकादशी का व्रत रखने का शुभ मुहूर्त है 21 सितंबर दिन बुधवार का है। एकादशी तिथि की शुरुआत 20 सितंबर शाम 9 बजकर 25 मिनट में होगी। वहीं एकादशी की समाप्ति 11बजकर 35 मिनट शाम में होगी।