नमस्कार मित्रों, आज हम उत्तराखंड के गांधी कहलाए जाने वाले स्वर्गीय श्री इंद्रमणि बडोनी जी पर निबंध PDF लेकर आए हैं आप इस निबंध को पीडीएफ रूप में भी डाउनलोड कर सकते हो। उत्तराखंड की प्रमुख समाजसेवी नेताओं में इंद्रमणि बडोनी जी के जीवनके बारे में संपूर्ण चर्चा करेंगे, उनकी जन्म से लेकर उनके द्वारा किए गए कार्यों का भी चर्चाएं करेंगे आप हमारे साथ बने रहिए।
नाम | इंद्रमणि बडोनी |
जन्म | 24 दिसंबर 1925 |
जन्म स्थान | ग्राम-अखोड़ी,पट्टी-ग्यारह गांव,टिहरी गढ़वाल |
उपाधि | उत्तराखंड का गांधी |
मृत्यु | 18 अगस्त 1999 |
संगठन | उत्तराखण्ड क्रान्ति दल (UKD) |
Essay on Indramani Badoni (इंद्रमणि बडोनी जी पर निबंध)
इंद्रमणि बडोनी जी का जन्म 24 दिसंबर 1925 को उत्तराखंड टिहरी गढ़वाल के अखोड़ी ग्राम में हुआ था उनकी माता का नाम श्रीमती कल्दी देवी पिता का नाम सुरेशानंद था। वह एक मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा रोडधार खास पट्टी स्कूल से की। पिताजी का जल्द निधन होने के कारण उन्होंने खेती बाड़ी का काम किया एवं रोजगार की प्राप्ति हेतु बॉम्बे भी गए। तथा अपनी उच्च शिक्षा देहरादून और मसूरी से बहुत कठिनाइयों के बीच पूर्ण की।
बचपन से ही देश प्रेमी तथा स्वतंत्रता प्रेमी होने कारण वह अन्याय के खिलाफ हमेशा आवाज उठाते थे। लेकिन 19 वर्ष की उम्र में ही उनका विवाह सुरजी देवी से हो गया। वह रंगमंच के बहुत ही शौकीन थे और इसी रंगमंच के कारण लोग उनसे जुड़े और उन्होंने उत्तराखंड में कई नाटक मंडलिया भी बनाई। इसी रंगमंच से उन्हें एक अच्छा कलाकार बनने का मौका मिला तो वह नृत्य संगीत एवं शारीरिक मुद्राएं लोगों को सिखाने लगे।
उन्होंने गांव में रहकर ही अपने सामाजिक जीवन का विस्तार प्रारंभ किया एवं कई जगह सांस्कृतिक कार्यक्रम कराए जिसमें उन्होंने माधो सिंह भंडारी नृत्य नाटिका एवं रामलीला के कई मंच प्रदर्शित करवाएं। माधो सिंह का यह नाटक इतना प्रसिद्ध हुआ कि लोगों ने इसे बहुत ही सराहा। वह एक बहुत ही अच्छे अभिनेता, गायक, निर्देशक, हारमोनियम तथा तबले के जानकार एवं नृतक थे। उन्होंने अपने संगीत की शिक्षा श्री जबर सिंह नेगी से प्राप्त की।
1956 में उन्होंने एक स्थानीय कलाकारों का दल बनाकर गणतंत्र दिवस की संध्या पर आयोजित कार्यक्रमों में केदार नृत्य प्रस्तुत कर अपनी लोक कला को बड़े मंच पर प्रस्तुत किया।
इंद्रमणि बडोनी का उत्तराखंड को स्वतंत्र कराने एवं राज्य के विकास में बहुत बड़ा योगदान था उन्होंने राज्य को विकसित करने के लिए कई योजनाओं का निर्माण किया पर्यटन क्षेत्र बनाए ताकि लोग देश-विदेश से घूमने राज्य में आए। शिक्षा प्रेमी होने के कारण उन्होंने उत्तराखंड के कई क्षेत्रों में स्कूलों का निर्माण करवाया। उन्होंने उत्तराखंड में आंदोलन के लिए कई दलों का निर्माण किया जिससे वह उत्तराखंड में आंदोलन के नायक भी बन गए और लोगों ने इंद्रमणि बडोनी जी को “उत्तराखंड का गांधी” उपाधि देदी।
1956 में ही वह जखोली विकासखंड के प्रमुख बने इससे पहले वह गांव के प्रधान भी थे। 1967 में प्रयाग विधानसभा से विधायक के लिए खड़े हुए तथा तीन बार लगातार विधायक चुने गए। 1969 में अखिल भारतीय कांग्रेस के लिए उम्मीदवार के रूप में दूसरी बार विधायक बने। 1989 में हुए विधानसभा चुनाव में वह ब्रह्म दत्त जी से चुनाव हारे। इसके बाद उन्होंने उत्तराखंड को पृथक राज्य बनाने की जागरूकता फैलाई। 1979 में उन्होंने उत्तराखंड के मसूरी में उत्तराखंड क्रांति दल बनाया व जीवन भर एक दल के सदस्य रहे।
1994 में पौड़ी में पृथक उत्तराखंड राज्य के लिए आमरण अनशन की शुरुआत की जिसके बाद सरकार द्वारा इन्हें मुजफ्फरनगर जेल में बंद कर दिया गया। इसके पश्चात 2 सितंबर एवं 2 अक्टूबर को काला इतिहास घटित हुआ और उत्तराखंड आंदोलन में कई मोड़ आए वह पूरे आंदोलन में केंद्रीय भूमिका में रहे। 18 अगस्त 1999 ऋषिकेश की विट्ठल आश्रम में इनका निधन हो गया।