कालभैरव अष्टकम् Kaal Bhairav Ashtakam PDF

Download PDF of Kaal Bhairav Ashtakam Lyrics in Hindi (कालभैरव अष्टकम्)

नमस्कार दोस्तों आज मैं आप सभी के साथ Kaal Bhairav Ashtakam Lyrics साझा करने वाला हूं जिसमें इसका संपूर्ण अर्थ भी दिया जाएगा. जिसे download करने के लिए आप नीचे दिए गए लिंक से डाउनलोड कर सकते हैं।

Language Sanskrit
Pages5
Size7 MB
SourcePDFNOTES.CO

भगवान काल भैरव को शिवजी का स्वरूप माना गया है. हिंदू धर्म में ऐसा माना जाता है कि भैरव देवता कलयुग की सभी प्रकार की बाधाओं का शीघ्र निवारण करते हैं, खास तौर पर भूत प्रेत व तांत्रिक बाधा के दोष उनकी पूजा करने से दूर हो जाते हैं.

इसके अलावा भगवान भैरव की पूजा करने से राहु केतु भी शांत हो जाते हैं. इसीलिए हिंदू धर्म में कालभैरव देवता को उचित स्थान मिला है. साथ ही साथ संतान की दीर्घायु के लिए तथा सभी जन कल्याण के लिए भगवान काल भैरव को पूजा जाता है ।

आदि शंकराचार्य ने भगवान कालभैरव को प्रसन्न करने के लिए नौ श्लोकों के एक स्तोत्र की रचना की। जिसमें से आठ श्लोक कालाभैरव की महिमा स्तुति करने वाले हैं और नौवा श्लोक फलश्रुति है। यही कारण है कि इसमें नौ श्लोक होते हुए भी इसे Kaal Bhairav Ashtakam कहा जाता है।

यदि आप सभी प्रकार की तांत्रिक तथा भूत प्रेत से छुटकारा पाना चाहते हैं तो आपको भगवान काल भैरव की पूजन करते समय कालभैरवाष्टकम् तथा भैरव कवच का पाठ जरूर करना चाहिए.

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भगवान कालभैरव को भारत, श्रीलंका, नेपाल के साथ-साथ तिब्बती बौद्ध धर्म में भी पूजा जाता है इसके अलावा हिंदू और जैन दोनों काल भैरव भगवान की पूजा करते हैं।

अष्टकम् के फायदे (Kaal Bhairav Ashtakam Ke Fayde)

  • Kaal Bhairav Ashtakam पढ़ने से आपके जीवन में समस्त प्रकार की कठिनाइयां दूर हो जाती है.
  • इसको पढ़ने से भूत प्रेत संबंधित समस्याएं दूर होती है.
  • यदि आपका कोई काम रुका हुआ है तो आप इस मंत्र को जरूर पढ़ें इससे जरूर फायदा होगा.
  • इसके अलावा यदि आप कोर्ट कचहरी के मामले में फंसे हुए हैं तो आपको भगवान कालभैरवाष्टकम् पाठ जरूर करना चाहिए.
  • काल भैरव भगवान शिव का ही स्वरूप माने जाते हैं तथा काशी और उज्जैन में भगवान भैरव का सिद्धि स्थान माना जाता है ऐसा माना जाता है कि भगवान भैरव की साधना करने वाले व्यक्ति को सांसारिक दुखों से छुटकारा मिल जाता है.

Kala Bhairava Ashtakam Lyrics

देवराज सेव्यमान पावनाङ्घ्रि पङ्कजं
व्यालयज्ञ सूत्रमिन्दु शेखरं कृपाकरम् ।
नारदादि योगिबृन्द वन्दितं दिगम्बरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ 1 ॥

भानुकोटि भास्वरं भवब्धितारकं परं
नीलकण्ठ मीप्सितार्ध दायकं त्रिलोचनम् ।
कालकाल मम्बुजाक्ष मस्तशून्य मक्षरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ 2 ॥

शूलटङ्क पाशदण्ड पाणिमादि कारणं
श्यामकाय मादिदेव मक्षरं निरामयम् ।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्र ताण्डव प्रियं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ 3 ॥

भुक्ति मुक्ति दायकं प्रशस्तचारु विग्रहं
भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोक विग्रहम् ।
निक्वणन्-मनोज्ञ हेम किङ्किणी लसत्कटिं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ 4 ॥

धर्मसेतु पालकं त्वधर्ममार्ग नाशकं
कर्मपाश मोचकं सुशर्म दायकं विभुम् ।
स्वर्णवर्ण केशपाश शोभिताङ्ग निर्मलं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ 5 ॥

रत्न पादुका प्रभाभिराम पादयुग्मकं
नित्य मद्वितीय मिष्ट दैवतं निरञ्जनम् ।
मृत्युदर्प नाशनं करालदंष्ट्र भूषणं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ 6 ॥

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अट्टहास भिन्न पद्मजाण्डकोश सन्ततिं
दृष्टिपात नष्टपाप जालमुग्र शासनम् ।
अष्टसिद्धि दायकं कपालमालिका धरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ 7 ॥

भूतसङ्घ नायकं विशालकीर्ति दायकं
काशिवासि लोक पुण्यपाप शोधकं विभुम् ।
नीतिमार्ग कोविदं पुरातनं जगत्पतिं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ 8 ॥

कालभैरवाष्टकं पठन्ति ये मनोहरं
ज्ञानमुक्ति साधकं विचित्र पुण्य वर्धनम् ।
शोकमोह लोभदैन्य कोपताप नाशनं
ते प्रयान्ति कालभैरवाङ्घ्रि सन्निधिं ध्रुवम् ॥ 9 ॥

॥ इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं कालभैरवाष्टकं संपूर्णम् ॥

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