Kaal Bhairav Ashtami Vrat Katha, Puja Vidhi, Shubh Muhurat PDF
Language | Hindi |
Size | 1.2 MB |
Pages | 3 |
Source | PDFNOTES.CO |
प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मासिक कालाष्टमी का व्रत किया जाता है । परंतु मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को Kaal Bhairav Ashtami या काल भैरव जयंती मनाई जाती है ।
इस दिन संपूर्ण विधि विधान से भगवान भैरव की पूजा अर्चना की जाती है क्योंकि भगवान भैरव को शिवजी का ही रूप माना गया है । इसलिए रात्रि के समय काल भैरव की पूजा की जाती है इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है ।
कालभैरव अष्टमी का महत्व (Importance)
ऐसा कहा जाता है कि काल भैरव अष्टमी के दिन भगवान काल भैरव की पूजा करने से सभी प्रकार के भय से मुक्ति मिलती है तथा इसके अलावा ग्रह तथा शत्रु के कारण उत्पन्न बाधा दूर हो जाती है । इतना ही नहीं भगवान भैरव का आशीर्वाद सदैव उसे भक्त के पास रहता है ।
कालभैरव अष्टमी व्रत कथा (Vrat Katha)
एक बार त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश तीनो में कौन श्रेष्ठ है, इस बात पर लड़ाई चल रही थे । इस बात पर बहस बढ़ती ही चली गई । जिसके बाद सभी देवी देवताओं को बुलाकर एक बैठक की गई— यहाँ सबसे यही पूछा गया कि कौन ज्यादा श्रेष्ठ है?
सभी ने विचार विमर्श कर इस बात का उत्तर खोजा , जिस बात का समर्थन शिव एवं विष्णु ने तो किया लेकिन तब ही ब्रह्मा जी ने भगवान शिव को अपशब्द बोल दिया , जिससे भगवान शिव को बहुत क्रोधित हुए तथा उनके शरीर से छाया के रूप में काल भैरव की उत्पत्ति हुई ।
मार्गशीर्ष माह की अष्टमी तिथि को ही काल भैरव की उत्पत्ति हुई थी । क्रोध से उत्पन्न काल भैरव जी ने अपने नाखून से ब्रह्मा जी का सिर काट दिया । इसके बाद ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए काल भैरव तीनों लोकों में घूमें परन्तु कही भी उन्हें शांति नहीं मिली । अंत में घूमते हुए वह काशी पहुंचे जहां उन्हें शांति प्राप्त हुई ।
वहां एक भविष्यवाणी हुई जिसमें भैरव बाबा को काशी का कोतवाल बनाया गया तथा वहां रहकर लोगों को उनके पापों से मुक्ति दिलाने के लिए वहां बसने को कहा गया ! व् शिवपुराण के अनुसार मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को दोपहर में भगवान शंकर के अंश से भैरव की उत्पत्ति हुई थी । इसलिए इस तिथि को काल भैरवाष्टमी या भैरवाष्टमी के नाम से जाना जाता है ।
पुराणों के अनुसार अंधकासुर दैत्य अपनी सीमाएं पार कर रहा था । यहां तक कि एक बार घमंड में चूर होकर वह भगवान शिव के ऊपर हमला करने का दुस्साहस कर बैठा । तब उसके संहार के लिए लिए शिव के खून से भैरव की उत्पत्ति हुई ।
Kaal Bhairav Ashtami Puja Vidhi
- काल भैरव अष्टमी के दिन प्रातः सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें तथा व्रत का संकल्प लें.
- इस दिन शाम के समय किसी मंदिर में जाकर भगवान भैरव की प्रतिमा के सामने चौमुखा दीपक जलाएं.
- चला जाता है कि काल भैरव भगवान का पूजन रात्रि के समय करना चाहिए तो आप रात्रि के समय पूजन शुरू करें.
- भगवान को फूल, पान, इमरती, जलेबी, उड़द, नारियल आदि चीजें अर्पित करें.
- इसके उपरांत भगवान के सामने आसन पर बैठकर काल भैरव अष्टकम तथा चालीसा का पाठ करें
- पूजन पूर्ण होने के बाद आरती अवश्य करें. तथा इस पूजा के दौरान हुई गलतियों की क्षमा मांगें.
कालभैरव जयंती शुभ मुहूर्त (Kaal Bhairav Jayanti Shubh Muhurat 2021)
- मार्गशीर्ष मास कृष्ण पक्ष अष्टमी आरंभ:- 27 नवंबर 2021, शनिवार प्रातः 05:43 से लेकर,
- मार्गशीर्ष मास कृष्ण पक्ष अष्टमी समापन- 28 नवंबर 2021, रविवार प्रातः 06:00 तक ।
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