Download PDF of हिंदी दिवस पर कविता | Hindi Diwas Poems
Hindi Diwas Poems: प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है क्योंकि संविधान सभा न्यूज़ 14 सितंबर 1949 को यह निर्णय लिया था कि हिंदी भारत की साथ ही साथ संघ की भी आधिकारिक भाषा होगी भारत में हिंदी का एक बहुत बड़ा इतिहास है और हिंदी को राष्ट्रीय भाषा बनाने को लेकर भी कई बार मांग हुई है लेकिन हिंदी को अभी तक भारत की राष्ट्रीय भाषा घोषित नहीं किया गया है क्योंकि भारत में अलग-अलग भाषाएं बोली जाती है जिनकी कुल संख्या 23 है और इन सभी भाषाओं को अधिकारिक भाषा कहा जाता है।
अब आपको बता देते हैं कि हिंदी को भारत में सबसे ज्यादा बोला जाता है यानी भारत के अधिकतम राज्यों में हिंदी भाषा का प्रयोग किया जाता है इसीलिए यह भाषा सबसे खास हो जाती है। हिंदी भाषा के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए संविधान में भी इसका वर्णन किया गया है संविधान में कहा गया है कि हिंदी भाषा को बनाए रखना यहां सरकार की जिम्मेदारी है इसीलिए तब से लेकर आज तक हिंदी दिवस को मनाया जाता है।
अब दिन प्रतिदिन यहां देखा जा रहा है कि हिंदी भाषा का महत्व घटता जा रहा है क्योंकि अब हिंदी का स्थान अंग्रेजी भाषा नहीं ले लिया है सरकारी दफ्तरों में भी अंग्रेजी का इस्तेमाल किया जाता है धीरे-धीरे सभी क्षेत्रों में हिंदी का अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है इस अस्तित्व को समाप्त होने से बचाने के लिए 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है इस पर सरकार भी बहुत ज्यादा जोर देती है
हिंदी भाषा को सदैव बचाए रखने के लिए हम आपको 10 कविताएं दे रहे हैं इनमें से कुछ कविताएं स्वरचित हैं जिन्हें किसी ना किसी व्यक्ति में स्वयं बनाया है तथा कुछ कविताएं महान हिंदी रचयिताओं के द्वारा रचित की हुई है इन कविताओं के माध्यम से आपको हिंदी भाषा का महत्व बताया जा रहा है इन कविताओं के अंदर छुपे हुए अर्थ को जो व्यक्ति समझ आएगा उसे हिंदी भाषा से अधिक लगाव हो जाएगा इसी को देखते हुए इन सभी कविताओं को बनाया गया है।
हिंदी दिवस पर कविता
नीचे दी गई कविता को अटल बिहारी वाजपेई जी ने लिखा है जिनका उद्देश्य हिंदी भाषा को सदैव बनाए रखना था।
कविता-1
गूंजी हिन्दी विश्व में,
स्वप्न हुआ साकार;
राष्ट्र संघ के मंच से,
हिन्दी का जयकार;
हिन्दी का जयकार,
हिन्दी हिन्दी में बोला;
देख स्वभाषा-प्रेम,
विश्व अचरज से डोला;
कह कैदी कविराय,
मेम की माया टूटी;
भारत माता धन्य,
स्नेह की सरिता फूटी!
कविता-2
एक डोर में सबको जो है बांधती
वह हिंदी है
हर भाषा को सगी बहन जो मानती
वह हिंदी है।
भरी-पूरी हों सभी बोलियां
यही कामना हिंदी है,
गहरी हो पहचान आपसी
यही साधना हिंदी है,
सौत विदेशी रहे न रानी
यही भावना हिंदी है,
तत्सम, तद्भव, देशी, विदेशी
सब रंगों को अपनाती
जैसे आप बोलना चाहें
वही मधुर, वह मन भाती
नए अर्थ के रूप धारती
हर प्रदेश की माटी पर,
‘खाली-पीली बोम मारती’
मुंबई की चौपाटी पर,
चौरंगी से चली नवेली
प्रीती-पियासी हिंदी है,
बहुत बहुत तुम हमको लगती
‘भालो-बाशी’ हिंदी है।
उच्च वर्ग की प्रिय अंग्रेजी
हिंदी जन की बोली है,
वर्ग भेद को ख़त्म करेगी
हिंदी वह हमजोली है,
सागर में मिलती धाराएं
हिंदी सबकी संगम है,
शब्द, नाद, लिपि से भी आगे
एक भरोसा अनुपम है,
गंगा-कावेरी की धारा
साथ मिलाती हिंदी है.
पूरब-पश्चिम,कमल-पंखुड़ी
सेतु बनाती हिंदी है।
गिरिजाकुमार माथुर
कविता-3
हिन्दी-हिन्दु-हिन्दुस्तान,
कहते है, सब सीना तान,
पल भर के लिये जरा सोचे इन्सान
रख पाते है हम इसका कितना ध्यान,
सिर्फ 14 सितम्बर को ही करते है
अपनी राष्टृ भाषा का सम्मान
हर पल हर दिन करते है हम
हिन्दी बोलने वालो का अपमान
14 सितम्बर को ही क्यों
याद आता है बस हिन्दी बचाओं अभियान
क्यों भूल जाते है हम
हिन्दी को अपमानित करते है खुद हिन्दुस्तानी इंसान
क्यों बस 14 सितम्बर को ही हिन्दी में
भाषण देते है हमारे नेता महान
क्यों बाद में समझते है अपना
हिन्दी बोलने में अपमान
क्यों समझते है सब अंग्रेजी बोलने में खुद को महान
भूल गये हम क्यों इसी अंग्रेजी ने
बनाया था हमें वर्षों पहले गुलाम
आज उन्हीं की भाषा को क्यों करते है
हम शत् शत् प्रणाम
अरे ओ खोये हुये भारतीय इंसान
अब तो जगाओ अपना सोया हुआ स्वाभिमान
उठे खडे हो करें मिलकर प्रयास हम
दिलाये अपनी मातृभाषा को हम
अन्तरार्ष्टृीय पहचान
ताकि कहे फिर से हम
हिन्दी-हिन्दु-हिन्दुस्तान,
कहते है, सब सीना तान |
स्वरचित
स्वरचित कविता
राष्ट्रभाषा की व्यथा।
दु:खभरी इसकी गाथा।।
क्षेत्रीयता से ग्रस्त है।
राजनीति से त्रस्त है।।
हिन्दी का होता अपमान।
घटता है भारत का मान।।
हिन्दी दिवस पर्व है।
इस पर हमें गर्व है।।
सम्मानित हो राष्ट्रभाषा।
सबकी यही अभिलाषा।।
सदा मने हिन्दी दिवस।
शपथ लें मने पूरे बरस।।
स्वार्थ को छोड़ना होगा।
हिन्दी से नाता जोड़ना होगा।।
हिन्दी का करे कोई अपमान।
कड़ी सजा का हो प्रावधान।।
हम सबकी यह पुकार।
सजग हो हिन्दी के लिए सरकार।।
स्वरचित कविता
हम सबकी प्यारी,
लगती सबसे न्यारी।
कश्मीर से कन्याकुमारी,
राष्ट्रभाषा हमारी।
साहित्य की फुलवारी,
सरल-सुबोध पर है भारी।
अंग्रेजी से जंग जारी,
सम्मान की है अधिकारी।
जन-जन की हो दुलारी,
हिन्दी ही पहचान हमारी।
स्वरचित कविता
जन-जन की भाषा है हिंदी,
भारत की आशा है हिंदी,
जिसने पूरे देश को जोड़े रखा है,
वो मज़बूत धागा है हिंद,
हिन्दुस्तान की गौरवगाथा है हिंदी,
एकता की अनुपम परम्परा है हिंदी,
जिसके बिना हिन्द थम जाए,
ऐसी जीवन रेखा है हिंदी,
जिसने काल को जीत लिया है,
ऐसी कालजयी भाषा है हिंदी,
सरल शब्दों में कहा जाए तो,
जीवन की परिभाषा है हिंदी।
स्वरचित कविता
हिंदी हैं हम, वतन है हिन्दुस्तान हमारा,
कितना अच्छा व कितना प्यारा है ये नारा।
हिंदी में बात करें तो मूर्ख समझे जाते हैं।
अंग्रेजी में बात करें तो जैंटलमेल हो जाते।
अंग्रेजी का हम पर असर हो गया।
हिंदी का मुश्किल सफ़र हो गया।
देसी घी आजकल बटर हो गया,
चाकू भी आजकल कटर हो गया।
अब मैं आपसे इज़ाज़त चाहती हूँ,
हिंदी की सबसे हिफाज़त चाहती हूँ।।
स्वरचित कविता
ये कैसी जग में हिंदी की दुर्दशा दोस्तों,
ये क्यों हिंदी का है रोना
अब हर सुबह ‘सन’ उगता है
ओर दोपहर को कहते सब ‘नून’
चंदा मामा तो कहीं खो गये
अब तो हर बच्चा बोले ‘मून’
ये कैसी जग में हिंदी की दुर्दशा दोस्तों,
ये क्यों हिंदी का है रोना।
मां बोलती, खालो बेटा जल्दी से
नहीं तो डॉगी आजाएगा,
अब ऐसे मे वो नन्हा बालक भला
कुत्ते को कैसे जान पाएगा।
बचपन से जो देखा हमने
वही सीखते हैं हम जीवन में,
जब विद्या लेने वो स्कूल है जाता
तो विद्यालय कहां से जान पाएगा।
ये कैसी जग में हिंदी की दुर्दशा है दोस्तों,
ये क्यों हिंदी का है रोना।
जनवरी, फरवरी तो याद हैं सबको
पर हिंदी के माह सिलेबस में नहीं,
ए, बी, सी तो सब हैं जानते
पर क, ख, ग से हैं अंजान कई।
हिंद देश के वासी हैं हम
पर हिंदी से न कोई नाता है,
ये कैसी जग में हिंदी की दुर्दशा दोस्तों,
ये क्यों हिंदी का है रोना।
भाषा का विज्ञान समझ लो,
क्यों कि अब इंजीनियरिंग का है स्कोप नहीं
हिंदी का ही ज्ञान तुम लेलो
क्यों कि विदेशों मे है अब मांग बड़ी।
चाहे दुनिया में जहां भी जाओ
हिंदुस्तानी ही कहलाओगे,
अगर पूछ ले कोई देश की भाषा तो,
शर्म से पानी-पानी हो जाओगे।
ये कैसी जग में हिंदी की दुर्दशा दोस्तों,
ये क्यों हिंदी का है रोना।
स्वरचित कविता
संस्कृत की एक लाड़ली बेटी है ये हिन्दी।
बहनों को साथ लेकर चलती है ये हिन्दी।
सुंदर है, मनोरम है, मीठी है, सरल है,
ओजस्विनी है और अनूठी है ये हिन्दी।
पाथेय है, प्रवास में, परिचय का सूत्र है,
मैत्री को जोड़ने की सांकल है ये हिन्दी।
पढ़ने व पढ़ाने में सहज है, ये सुगम है,
साहित्य का असीम सागर है ये हिन्दी।
तुलसी, कबीर, मीरा ने इसमें ही लिखा है,
कवि सूर के सागर की गागर है ये हिन्दी।
वागेश्वरी का माथे पर वरदहस्त है,
निश्चय ही वंदनीय मां-सम है ये हिंदी।
अंग्रेजी से भी इसका कोई बैर नहीं है,
उसको भी अपनेपन से लुभाती है ये हिन्दी।
यूं तो देश में कई भाषाएं और हैं,
पर राष्ट्र के माथे की बिंदी है ये हिन्दी।
स्वरचित कविता
हिंदी हमारी जान है आन बान और शान है
मातृत्व पर मारने वालों की यही तो पहचान है
हिंदी से है हिंदुस्तान यही अपना अभिमान है
सबकी सखी सबसे सरल जैसे सबका सम्मान है
यही तो है अपनी धरती पर प्रेम का दूज नाम है
बोली में ये अपनापन देती अखंडता इसका ईमान है
संविधान में पारित कॉलेज से विधालयों तक पूजित
जन जन का गौरव लेखको के बीच सर्वशक्तिमान है
आओ सब बढ़ाए इसका मान तभी होगी ये हर बोली में विद्यमान।
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