श्री रामचंद्र कृपालु भजमन जिसे राम स्तुति (Ram Stuti) के नाम से भी जाना जाता है, 16वी हुई शताब्दी में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित एक भजन है। जिसमें भगवान श्री राम प्रभु के गुणों तथा शौर्य का वर्णन किया गया है। इस स्तुति का निर्माण संस्कृतमय अवधि भाषा में किया गया है। इस स्थिति में मन को मोह लेने वाले अलंकार तथा ओतप्रोत करने वाला भक्ति रस है जो की साहित्यिक तौर पर अद्भुत है। इसे हरिगीतिका छंद में लिखा गया है।
माना जाता है कि प्रभु श्री राम के नाम का जप करने से हनुमान जी खुश हो जाते है। अतः हनुमान जी की प्रतिमा के सामने इस स्थिति का पाठ करने से महाबली हनुमान जी की कृपा बनी रहती है।
भगवान राम की स्तुति को श्री राम नवमी, सुंदरकांड, रामचरितमानस कथा, विजयादशमी, हनुमान जन्मोत्सव एवं अखंड रामायण के पाठ में गाया जाता है।
राम स्तुति (Ram Stuti)
श्रीरामचन्द्र कृपालु भजमन हरणभवभयदारुणम्।
नवकंजलोचन कंजमुख करकंज पदकंजारुणम् ॥१॥
कन्दर्प अगणित अमित छवि नवनीलनीरदसुन्दरम्।
पटपीतमानहु तडित रूचिशुचि नौमिजनकसुतावरम् ॥२॥
भजदीनबन्धु दिनेश दानवदैत्यवंशनिकन्दनम्।
रघुनन्द आनन्दकन्द कोशलचन्द्र दशरथनन्दनम् ॥३॥
शिरमुकुटकुण्डल तिलकचारू उदारुअंगविभूषणम्।
आजानुभुज शरचापधर संग्रामजितखरदूषणम् ॥४॥
इति वदति तुलसीदास शङकरशेषमुनिमनरंजनम्।
ममहृदयकंजनिवासकुरु कामादिखलदलगञजनम् ॥५॥
मनु जाहि राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुन्दर सावरो।
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो ॥६॥
एही भाँति गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषींअली।
तुलसी भवानी पूजि पुनि-पुनि मुदित मन मन्दिर चली ॥७॥
जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे ॥८॥
व्याख्या हिंदी में
पंक्ति १: हे मन के कृपालु भगवान श्री राम जी का भजन कर! वह संसार के जन्म तथा मरण रूपी दारुण भय को दूर करने वाले पुरुषोत्तम हैं। उनके नेत्र नव विकसित कमल के समान है तथा उनका मुख हाथ तथा चरण भी लाल कमल के सदृश है।
पंक्ति २: उनके सौंदर्य की छवि अनगिनत काम देवों से भी बढ़कर है। उनके शरीर का नवीन नील जल से परिपूर्ण मेघो जैसा है। पीतांबर में रूपी शरीर मानव बिजली जैसा चमक रहा हो। ऐसे पावन रूपी जानकी पति श्री राम जी को मेरा प्रणाम।
पंक्ति ३: हे दीनबंधुओ, सूर्य के समान तेजस्वी, दैत्यों का नाश करने वालों, आनंद कंद कौशल देव रूपी आकाश में निर्मल चंद्रमा के समान दशरथ नंदन श्री राम का भजन करो।
पंक्ति ४: जिनके मस्तक पर रत्न जड़ित मुकुट, कानों में कुंडल व भाल में तिलक, तथा प्रत्येक अंग में सुंदर आभूषण घोषित हो, जिन की भुजाएं घुटनों तक लंबी हैं। जो धनुष बाण लिए हुए हैं, जिन्होंने संग्राम में खर-दूषण को को जीत लिया है।
पंक्ति ५: जिन्होंने शिव, तथा शेष मुनियों के मन को प्रसन्न करने वाले और काम क्रोध लोभ आदि शत्रुओं का नाश कर लिया है तुलसीदास प्रार्थना करते हैं कि ऐसे श्री रघुनाथ जी मेरे हृदय कमल पर सदा निवास करें।
पंक्ति ६: जिसमें तुम्हारा मन अनुराग युक्त प्रेमी हो गया हो, स्वभाव से सुंदर सांवले वर्ग के श्री रामचंद्र तुमको मिलेंगे वह जो दया का खजाना हो और सर्वज्ञ हो। तुम्हारी शील और स्नेह को जानता है
पंक्ति ७: इस प्रकार श्रीगौरीजी का आशीर्वाद सुनकर जानकीजी समेत सभी सखियाँ हृदय मे हर्षित हुईं। तुलसीदासजी कहते हैं, भवानीजी को बार-बार पूजकर सीताजी प्रसन्न मन से राजमहल को लौट चलीं
पंक्ति ८: गौरीजी को अनुकूल जानकर सीताजी के हृदय में जो हर्ष हुआ वह कहा नही जा सकता। सुन्दर मंगलों के मूल उनके बाँये अंग फड़कने लगे
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