रमा एकादशी व्रत कथा | Rama Ekadashi Vrat Katha Puja Vidhi & Aarti PDF

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नमस्कार दोस्तों आज मैं आप सभी के साथ Rama Ekadashi Vrat Katha, Vidhi, Samagri, Aarti PDF साझा करने वाला हूं जिसे आप नीचे दिए गए लिंक से डाउनलोड कर सकते हैं।

रमा एकादशी का महत्व

रमा एकादशी के व्रत को हर वर्ष कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि के दिन रखा जाता है इस दिन भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है यह व्रत सभी तरीके के पाप को नष्ट करने वाला तथा सुख समृद्धि को लाने वाला होता है । पद्म पुराण के अनुसार रमा एकादशी का व्रत कामधेनु और चिंतामणि के समान फल देता है इस व्रत को करने से भगवान विष्णु का धाम प्राप्त होता है तथा मृत्यु के बाद उसे मोक्ष की प्राप्ति होती हैं । इसके अलावा रमा एकादशी के प्रभाव से धन-धान्य की कमी दूर हो जाती है इसे इसीलिए रमा एकादशी कहते हैं क्योंकि रमा को माता लक्ष्मी का दूसरा नाम बताया गया है इसीलिए इस दिन माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है यदि सच्ची श्रद्धा और उपयुक्त नियम से पूजा करते हैं तो उचित लाभ प्राप्त होता है ।

एकादशी का व्रत हर महा के शुक्ल पक्ष तथा कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को होता है हर वर्ष में 24 एकादशी व्रत होते हैं तथा जिस वर्ष में अधिकमास होता है उस वर्ष में 26 एकादशी पड़ती हैं। प्रत्येक एकादशी व्रत का अपना एक विशेष महत्व होता है इसी प्रकार से कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की एक अच्छी तिथि को होने वाली रमा एकादशी का भी अपना एक महत्व होता है इसी दिन भगवान विष्णु की केशव स्वरूप का भी पूजन किया जाता है ।

रमा एकादशी व्रत कथा (Rama Ekadashi Vrat Katha)

एक बार की बात है जब धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से रमा एकादशी व्रत की महत्वता और उससे जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में पूछने लगे। तब भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया की कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी का व्रत किया जाता है। यह व्रत हमारे सभी पापों का नाश करता है। धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से इस कथा को सुनने की प्रार्थना की, तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा ठीक है, मैं आपको यह कथा सुनाता हूं आप इसे ध्यान पूर्वक सुनें।

भगवान श्री कृष्ण कहते हैं, हे धर्मराज! प्राचीन समय में मुचुकुंद नाम का एक राजा राज करता था। उस राजा की मित्रता देवराज इंद्र, मृत्यु के देवता यम, धन के देवता कुबेर, एवं वरुण देव और विभीषण थी।

उस राजा की एक पुत्री थी जिसका नाम चंद्रभागा था। राजा ने अपनी पुत्री का विवाह चंद्रसेन के पुत्र शोभन के साथ किया था। एक समय जब शोभन ससुराल आया था तब उन्हीं दिनों जल्द ही रमा एकादशी का व्रत भी आने वाला था।

शोभन शरीर से दुबला पतला था और उसे भूख बर्दाश्त नहीं होती थी। लेकिन राजा ने पूरे राज्य में यह घोषणा करवा दी थी कि एकादशी के दिन किसी के भी घर भोजन नहीं बनेगा और ना ही कोई भोजन करेगा। 

राजा की यह घोषणा सुनकर शोभन चिंता में पड़ गया और अपनी पत्नी से जाकर बोला, चंद्रभागा मैं तो भूख बर्दाश्त नहीं कर सकता तुम कुछ ऐसा उपाय करो जिससे मेरे भोजन का प्रबंध हो सके, अन्यथा मैं बिना भोजन के मर जाऊंगा।

चंद्रभागा ने कहा, स्वामी मेरे पिता के राज्य में एकादशी के दिन कोई भी भोजन नहीं करता इंसान तो छोड़िए इस राज्य में एकादशी के दिन किसी जानवर को भी भोजन नहीं दिया जाता है। चंद्रभागा ने कहा अगर आप भोजन करना चाहते हैं तो राज्य से बाहर किसी दूसरे स्थान चले जाइए क्योंकि इस राज्य में रहकर तो आपका भोजन करना असंभव है। 

चंद्रभागा की बात सुनकर शोभन ने कहा अगर इस व्रत में तुम्हारे पिता कि इतनी आस्था है तो मैं भी यह व्रत जरूर करूंगा चाहे जो हो जाए।

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शोभन ने भी रमा एकादशी का व्रत रख लिया लेकिन कुछ समय बीतने के बाद ही वह भूख और प्यास से तड़पने लगा। सूर्यास्त के बाद जहां पूरा राज्य जागरण में मस्त था वही शोभन भूख और प्यास से पीड़ित था। सुबह होते-होते शोभन के प्राण पखेरू हो लिए और उसकी मृत्यु हो गई।

राजा ने पूरे विधि विधान से शोभन का अंतिम संस्कार किया और चंद्रभागा को राज महल में ही रहने का निवेदन किया। पति की मृत्यु के बाद चंद्रभागा पिता के राज महल में ही रहने लगी। 

लेकिन रमा एकादशी व्रत रखने की वजह से शोभन को मंदराचल पर्वत पर एक सुंदर देवपुर प्राप्त हुआ जहां वह अप्सराओं के साथ और हीरे जवाहरात मोतियों के साथ रहने लगा। शोभन की जीवन शैली देखकर ऐसा प्रतीत होता था जैसे वहां दूसरा इंद्र विराजमान हो।

कुछ समय बाद मुचुकुंद नगर में रहने वाला एक ब्राम्हण तीर्थ यात्रा करते हुए घूमता घूमता उस पर्वत की ओर जा पहुंचा। वहां जाकर जब उसने शोभन को देखा तो देखते ही पहचान गया कि वह राजा का जमाई शोभन है। शोभन भी उसे पहचान गया और उसे अपने पास बिठाकर राज्य के बारे में कुशल मंगल पूछा। ब्राह्मण ने कहा राज्य में राजा और सभी लोग कुशल मंगल है। लेकिन हे राजन, मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि मृत्यु के पश्चात भी आपको यह सब कुछ इतना आलीशान महल इतना सुंदर राज्य कैसे प्राप्त हुआ।

तब शोभन बोला की कार्तिक कृष्ण पक्ष की रमा एकादशी व्रत करने से मुझे यह नगर प्राप्त हुआ है। शुभम ने कहा लेकिन ब्राह्मण देव यह सब अस्थिर है, कुछ ऐसा उपाय बताइए जिससे यह हमेशा के लिए स्थिर हो जाए। 

ब्राह्मण ने कहा, राजन स्थिर क्यों नहीं है? और स्थिर कैसे हो सकता है? आप बताइए जरूरत पड़ी तो मैं अश्वमेध यज्ञ भी करने को तैयार हूं। शोभन ने कहा मैंने पूरी श्रद्धा से रमा एकादशी का व्रत किया था इस वजह से मुझे यह सब प्राप्त हुआ लेकिन अभी तक मेरी पत्नी चंद्रभागा को इसके बारे में कुछ नहीं पता है इसलिए यह सब अस्थिर है। अगर आप जाकर यह सारी कहानी चंद्रभागा को बता दें तो यह सब स्थिर हो जाएगा।

ब्राह्मण अपने राज्य वापस लौटा और राजा की पुत्री चंद्रभागा को सारी कहानी सुनाई। चंद्रभागा उसकी बात सुनकर बेहद प्रसन्न हुई है और ब्राह्मण से कहा कि आप सच कह रहे हैं या किसी सपने की बात कर रहे हैं। ब्राह्मण ने कहा पुत्री मैंने तुम्हारे पति को साक्षात देखा है यह कोई स्वप्न नहीं था।

चंद्रभागा ने ब्राह्मण देव से निवेदन किया कि वह उसे लेकर उसके पति के पास जाएं और उन दोनों का मेल पुनः करवा दें। ब्राह्मण ने चंद्रभागा की बात सुनकर उसे मंदराचल पर्वत के समीप वामदेव ऋषि के आश्रम पर ले गया जहां वामदेव ने सारी बातें सुनी और वेद मंत्रों के उच्चारण से चंद्रभागा का शरीर दिव्य कर दिया। एकादशी व्रत के कारण चंद्रभागा दिव्य गति से अपने पति के निकट पहुंच गई।

अपनी प्रिय पत्नी को देखकर शोभन अति प्रसन्न हुआ और उसे अपने पास बिठा लिया। चंद्रभागा कहने लगी हे स्वामी आप मेरे सभी पुण्यों को ग्रहण कीजिए। चंद्रभागा ने कहा पिछले 8 वर्षों से मैं अपने पिता के घर रमा एकादशी व्रत को विधिपूर्वक संपन्न करती आई हूं, इसलिए अब मैं आपके इस अस्थिर जीवन को स्थिर कर सकती हूं। चंद्रभागा ने अपने पुण्यो से वहां सब कुछ स्थिर कर दिया और अपने पति के साथ खुशहाल जीवन व्यतीत करने लगी।

भगवान श्री कृष्ण ने आखरी में कहा, हे धर्मराज भविष्य में जो भी मनुष्य इस व्रत को विधि पूर्वक संपन्न करेगा उसके समस्त पाप नष्ट हो जाएंगे। भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि, कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की एकादशी एक समान है इन दोनों में कोई भी भेद नहीं है। इसलिए इन दोनों एकादशी का व्रत जो भी मनुष्य विधि पूर्वक संपन्न करेगा वह हमेशा सुखी जीवन व्यतीत करेगा।

रमा एकादशी व्रत पूजा विधि (Rama Ekadashi Vrat Puja Vidhi)

  • जो भी व्यक्ति रमा एकादशी का व्रत रखते हैं दसवीं की रात्रि से ही इस व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए ।
  • दशमी तिथि को शुद्ध एवं सात्विक भोजन ग्रहण करें ।
  • इस दिन मांस मदिरा लहसुन प्याज का इस्तेमाल बिल्कुल भी ना करें ।
  • तथा ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए भगवान का नाम लेकर रात्रि को सो जाएं ।
  • अगले दिन एकादशी तिथि को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य क्रियाओं को कर के गंगा नदी में स्नान करें क्योंकि अगर आप गंगा नदी में स्नान करते हैं तो यहां आपके लिए बहुत ज्यादा लाभकारी होता है क्योंकि वैसे भी यहां कार्तिक का महीना है और कार्तिक के महीने में गंगा स्नान करने को वैसे भी शुभ माना जाता है ।
  • इसके साथ ही आप तुलसी माता की पूजा की करें लेकिन ध्यान रहे कि उस दिन तुलसी के पत्ते को नहीं तोड़ना चाहिए ।
  • अगर आप इस दिन गंगा स्नान ना कर पाए तो आप घर के जल में कुछ गंगा जल मिलाकर उससे भी स्नान कर सकते हैं ।
  • स्नान करने के पश्चात शुद्ध वस्त्र धारण करें तथा मन में संकल्प नहीं कि हे भगवान विष्णु/ केशव/ माता लक्ष्मी आज मैं रमा एकादशी का व्रत लेने जा रहा हूं या लेने जा रही हूं यहीं ध्यान में रखकर पूरे दिन आपको उपवास देना चाहिए ।
  • इसके पश्चात आपको एक पवित्र स्थान देना है तथा वहां पर एक चौकी रख देनी है तथा चौकी पर पीले रंग का वस्त्र बिछा दें तथा उसे चौकी के ऊपर भगवान विष्णु, केशव तथा माता लक्ष्मी की प्रतिमा रख दें ।
  • उसके पश्चात पूरे विधि विधान से मंत्रों का उच्चारण करें ।
  • लेकिन इससे पहले आपको यह ध्यान में रखना है कि किसी भी तरह की शुभ काम करने से पहले आपको भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए इसीलिए सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा करें ।
  • उसके पश्चात आप भगवान विष्णु का अभिषेक करें तथा उनमें पंचामृत चढ़ाएं तथा गंगाजल को अर्पित करें के बाद भगवान को पीले वस्त्र चढ़ाएं या पितांबरी वस्त्र चढ़ाएं ।
  • उसके पश्चात भगवान को तेल चढ़ाएं ध्यान या रखे कि भगवान विष्णु को अक्षत ना चढ़ाएं ।
  • इसके पश्चात भगवान को चंदन पुष्पों की माला अर्पित करें यदि आपके पास पीला पुष्प है तो पीला पुष्प अर्पित करें क्योंकि भगवान विष्णु को पीला पुष्पा अत्यधिक प्रिय है यदि आपके पास कमल का फूल है तो कमल का फूल भी अर्पित सकते हैं ।
  • तथा रात्रि के समय संपूर्ण पूजा विधि के द्वारा तथा मंत्रोचार के द्वारा सभी भगवानों को याद करें तथा उनकी पूजा करें तो भगवान से यह प्रार्थना करें कि हमारे जीवन में किसी भी तरीके की धन्य धन्य की कमी दूर हो जाए तथा सदेव सुखी रहें ।
  • उसके पश्चात भोग लगाएं। इसके बाद भोग को सभी में बांट दें ।
  • अगले दिन पूजा-पाठ और दान-दक्षिणा देकर ब्राह्मणों को घर पर बुलाकर भोजन करवाएं और फिर खुद पारण करें ।
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रमा एकादशी की आरती (Rama Ekadashi Aarti)

ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता

तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी

मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी
शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई

पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै

नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै
शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै

विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी,
पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की

चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली
नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली

शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी,
नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी

योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी
देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी

कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए
श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए

अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला
इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला

पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी
रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी

देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया
पावन मास में करूं विनती पार करो नैया

परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी
शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी

जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै
जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै

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