अनंत चतुर्दशी व्रत कथा | Anant Chaturdashi Vrat Katha & Pooja Vidhi PDF in Hindi
अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) को गणेश विसर्जन के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस दिन 10 दिवसीय गणेश उत्सव यानी गणेश चतुर्थी का अंतिम दिन है इसे गणेश चौदस के नाम से भी जाना जाता है
इस दिन भगवान गणेश जी का विसर्जन करके उन्हें विदा किया जाता है साधारण रूप में अनंत चतुर्दशी गणेश चतुर्थी के दसवें दिन आती है अनंत चतुर्दशी को मुख्य रूप से जैन और हिंदू धर्म के लोग ही मनाते हैं।
अनंत चतुर्दशी व्रत कथा (Anant Chaturdashi vrat Katha)
सतयुग में सुमन्तुनाम के एक मुनि थे। उनकी पुत्री शीला अपने नाम के अनुरूप अत्यंत सुशील थी। सुमन्तु मुनि ने उस कन्या का विवाह कौण्डिन्यमुनि से किया। कौण्डिन्यमुनि अपनी पत्नी शीला को लेकर जब ससुराल से घर वापस लौट रहे थे, तब रास्ते में नदी के किनारे कुछ स्त्रियां अनन्त भगवान की पूजा करते दिखाई पडीं।
शीला ने अनन्त-व्रत का माहात्म्य जानकर उन स्त्रियों के साथ अनंत भगवान का पूजन करके अनन्तसूत्रबांध लिया। इसके फलस्वरूप थोडे ही दिनों में उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया।
एक दिन कौण्डिन्य मुनि की दृष्टि अपनी पत्नी के बाएं हाथ में बंधे अनन्तसूत्रपर पडी, जिसे देखकर वह भ्रमित हो गए और उन्होंने पूछा-क्या तुमने मुझे वश में करने के लिए यह सूत्र बांधा है? शीला ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया-जी नहीं, यह अनंत भगवान का पवित्र सूत्र है। परंतु ऐश्वर्य के मद में अंधे हो चुके कौण्डिन्यने अपनी पत्नी की सही बात को भी गलत समझा और अनन्तसूत्रको जादू-मंतर वाला वशीकरण करने का डोरा समझकर तोड दिया तथा उसे आग में डालकर जला दिया।
इस जघन्य कर्म का परिणाम भी शीघ्र ही सामने आ गया। उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई। दीन-हीन स्थिति में जीवन-यापन करने में विवश हो जाने पर कौण्डिन्यऋषि ने अपने अपराध का प्रायश्चित करने का निर्णय लिया। वे अनन्त भगवान से क्षमा मांगने हेतु वन में चले गए। उन्हें रास्ते में जो मिलता वे उससे अनन्तदेवका पता पूछते जाते थे।
बहुत खोजने पर भी कौण्डिन्यमुनि को जब अनन्त भगवान का साक्षात्कार नहीं हुआ, तब वे निराश होकर प्राण त्यागने को उद्यत हुए। तभी एक वृद्ध ब्राह्मण ने आकर उन्हें आत्महत्या करने से रोक दिया और एक गुफामें ले जाकर चतुर्भुजअनन्तदेवका दर्शन कराया।
भगवान ने मुनि से कहा-तुमने जो अनन्तसूत्रका तिरस्कार किया है, यह सब उसी का फल है। इसके प्रायश्चित हेतु तुम चौदह वर्ष तक निरंतर अनन्त-व्रत का पालन करो। इस व्रत का अनुष्ठान पूरा हो जाने पर तुम्हारी नष्ट हुई सम्पत्ति तुम्हें पुन:प्राप्त हो जाएगी और तुम पूर्ववत् सुखी-समृद्ध हो जाओगे। कौण्डिन्यमुनिने इस आज्ञा को सहर्ष स्वीकार कर लिया।
भगवान ने आगे कहा-जीव अपने पूर्ववत् दुष्कर्मोका फल ही दुर्गति के रूप में भोगता है। मनुष्य जन्म-जन्मांतर के पातकों के कारण अनेक कष्ट पाता है। अनन्त-व्रत के सविधि पालन से पाप नष्ट होते हैं तथा सुख-शांति प्राप्त होती है। कौण्डिन्यमुनि ने चौदह वर्ष तक अनन्त-व्रत का नियमपूर्वक पालन करके खोई हुई समृद्धि को पुन:प्राप्त कर लिया।
अनंत चतुर्दशी का हिंदू धर्म में महत्व
इस दिन भगवान अनंत की पूजा की जाती है तथा अनंतसूत्र बांधा जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि अगर आपके घर कोई भी संकट आता है तो अनंत भगवान आपकी रक्षा करते हैं.
हिंदू धर्म के अनुसार महाभारत में जब पांडव जुए में अपना सब कुछ हार जाते है वन में कष्ट भोंगते हैं तो भगवान श्रीकृष्ण उन्हें सलाह देते हैं कि वे अनंत चतुर्दशी का व्रत करें इसीलिए धर्मराज युधिष्ठिर, उसके भाई तथा द्रोपदी सभी अनंत चतुर्दशी का व्रत रखते हैं इसलिए बाद में चल कर उन्हें इन सभी संकटों से मुक्ति मिल जाती है।
अनंत चतुर्दशी पूजा विधि Anant Chaturdashi Puja Vidhi
- सबसे पहले आप सुबह जल्दी उठकर स्नान करके स्वच्छ हो जाए
- आपके नजदीक कोई पवित्र नदी है तो आप वहाँ भी स्नान जरूर करें इस तरीके का विधान शास्त्रों में कहा गया है
- इसके बाद आप घर में स्थित पूजा गृह में कलश स्थापित कर ले
- कलश पर भगवान विष्णु की मूर्ति या उनकी तस्वीर रखनी चाहिए
- अब उनकी सम्मुख अनंत सूत्र रख दे
- उसके बाद ॐ अनन्तायनम: मंत्र के द्वारा पूजा करें
अनंन्तसागरमहासमुद्रेमग्नान्समभ्युद्धरवासुदेव।
अनंतरूपेविनियोजितात्माह्यनन्तरूपायनमोनमस्ते ।।
- पूजा के उपरांत अनंत सूत्र को पुरुष अपने दाहिने हाथ तथा स्त्री अपने दाहिने हाथ में बांध लें
- अनंत सूत्र बांधने के बाद सभी को भोग लगाएं प्रताप प्रताप को सभी में बांट लें
पूजा करने के बाद अब आप अनंत चतुर्दशी की व्रत कथा जरूर पढ़ें या फिर जरूर सुने