कबीर के दोहे | Kabir Ke Dohe PDF in Hindi

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कबीर दास जी 15 सदी के भारतीय कवि और संत दे जिन्होंने हिंदी साहित्य में सबसे बड़ा योगदान दिया कबीर दास निर्गुण भक्ति धारा के कवि थे इनका लेखन सिखों के आदि ग्रंथ में भी देखने को मिलता है.

उन्होंने हिंदू धर्म और इस्लाम धर्म को ना मानते हुए एक सर्वोच्च ईश्वर में विश्वास रखती थी उन्होंने समाज में फैली हुई कुरीति कर्मकांड तथा अंधविश्वास की निंदा की और इनकी आलोचना भी की उनके जीवनकाल के दौरान हिंदू और मुसलमानों ने उन्हें बहुत प्रताड़ित किया.

कबीर जी की प्रमुख शिक्षाएं निम्नलिखित हैं

  • अहिंसा
  • माँसाहार करना माहापाप
  • अनुशासन निषेध
  • गुरु बनना अति आवश्यक है
  • बिना गुरु के दान करना निषेध
  • व्यभिचार निषेध
  • छूआछात निषेध

संत कबीर ने बहुत सी रचनाएं की हैं लेकिन कबीर के दोहे (Kabir Ke Dohe) सबसे महत्वपूर्ण हैं तथा पूरे भारत वर्ष द्वारा बोले जाते हैं इन दोनों में उन्होंने जीवन की सच्चाई बताई है तथा मानव जीवन के बारे में पूरा ज्ञान दिया है.

जो व्यक्ति इन दोनों को पड़ता है तथा इसका अर्थ जानता है वह व्यक्ति किसी भी तरीके से पीछे नहीं रहता और दूसरों की भलाई करने में लग जाता है क्योंकि कबीरदास (Kabirdas) ने दोनों में इसी के बारे में बात की है कि किस तरीके से आप दूसरों की मदद कर सकते हैं और जीवन की सच्चाई को मानते हुए आप कैसे आगे बढ़ सकते हैं कबीर दास की सभी रचनाओं में इनका वर्णन मिलता है.

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कबीर जी ने मुख्य निम्नलिखित 6 ग्रंथ लिखे हैं

कबीर साखी:- इस ग्रंथ में कबीर साहेब जी साखियों के माध्यम से आत्मा को आत्म और परमात्म ज्ञान समझाया करते थे

कबीर बीजक:- इस ग्रंथ में मुख्य रूप से पद्ध भाग है।

कबीर शब्दावली:- इस ग्रंथ में मुख्य रूप से कबीर जी ने आत्मा को अपने अनमोल शब्दों के माध्यम से परमात्मा कि जानकारी बताई है।

कबीर दोहवाली:- इस ग्रंथ में मुख्य तौर पर कबीर जी के दोहे सम्मलित हैं।

कबीर ग्रंथावली:- इस ग्रंथ में कबीर जी के पद व दोहे सम्मलित किये गये हैं।

कबीर सागर:- यह सूक्ष्म वेद है जिसमें परमात्मा कि विस्तृत जानकारी है।

Dohe Lyrics in Hindi

साँच बराबर तप नहीं , झूठ बराबर पाप ।
जाके हिरदै साँच है , ताके हिरदै आप ॥
बोली एक अमोल है , जो कोई बोलै जानि ।
हिये तराजू तौलि के , तब मुख बाहर आनि ॥
अति का भला न बोलना , अति की भली न चुप ।
अति का भला न बरसना , अति की भली न धूप ॥
काल करै सो आज कर , आज करै सो अब्ब ।
पल में परलै होयगी , बहुरि करैगो कब्ब ॥
साँई इतना दीजिए , जामें कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा ना रहूँ , साधु न भूखा जाय ॥
निंदक नियरे राखिए , आँगन कुटी छवाय ।
बिन पानी , साबुन बिना , निर्मल करे सुभाय ॥
जाति न पूछो साधु की , पूछ लीजिए ग्यान ।
मोल करो तलवार का , पड़ी रहन दो म्यान ॥
माला फेरत जुग गया , फिरा न मन का फेर ।
कर का मनका डारि दे , मन का मनका फेर ॥
सोना , सज्जन , साधुजन , टूटि जुरै सौ बार ।
दुर्जन , कुंभ – कुम्हार के , एकै धका दरार ॥

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