Shiv Tandav Stotram PDF (शिव तांडव स्तोत्र सरल भाषा में) भगवान शिव को समर्पित स्तोत्र है जिसे रावण द्वारा रचा गया है। जिसकी रचना लंकापति रावण द्वारा शिवजी की आराधना कीजिए कुछ ही पलों में बना दिया था। यह स्तोत्र चमत्कारी तथा प्रभावशाली है इसके पाठ करने से मनुष्य अपने जीवन में सभी दुखों को भगाकर सुखी जीवन प्राप्त कर सकता है यह एक अद्वितीय काव्य रचना है जो खुद को दूसरों से अलग दिखाती है।
Shiv Tandav Stotram is a Sanskrit stotra composed by Ravana, this stotra describes the power and beauty of Lord Shiva. It was composed by Ravana seeking salvation from Shiva. It is a unique poetic composition which makes itself stand out from others. There are 16 quatrains in total.
शिव तांडव में तांडव शब्द ‘तांडुल’ शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है कूदना। तांडव एक प्रकार का नृत्य कहलाता है जिसके लिए ऊर्जा तथा शक्ति की आवश्यकता होती है। क्योंकि माना जाता है जोश से उछलने तथा नृत्य करने से मन तथा मस्तिष्क में शक्तिशाली उर्जाओ का संचार होता है।
शिव ताण्डव स्तोत्र अर्थ सहित
जटाटवी-गलज्जल-प्रवाह-पावित-स्थले
गलेऽव-लम्ब्य-लम्बितां-भुजंग-तुंग-मालिकाम्
डमड्डमड्डमड्डम-न्निनादव-ड्डमर्वयं
चकार-चण्ड्ताण्डवं-तनोतु-नः शिवः शिवम् ॥१॥
शिव जी की जटाओं से पवित्र गंगा की धाराएं बह रही है, जो उनके कंठ को प्रक्षालित करती हैं, उनके गले में सर्पों की माला का हार लटक रहा है, तथा उनके त्रिशूल में लटके डमरु से डम-ड्डम-ड्डम-ड्डम की पवित्र ध्वनि निकल रही है, जिस कारण से भगवान शिव अपना शुभ तांडव नृत्य कर रहे हैं, वे हम सभी को संपन्नता प्रदान करें।
जटा-कटा-हसं-भ्रमभ्रमन्नि-लिम्प-निर्झरी
विलोलवी-चिवल्लरी-विराजमान-मूर्धनि
धगद्धगद्धग-ज्ज्वल-ल्ललाट-पट्ट-पावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥२॥
शिव जी की जटाओं से बहने वाली मां गंगा अति वेग से भ्रमण कर रही हैं तथा उनके शीश पर लहरा रही हैं, उनके मस्तक पर अग्नि की प्रचंड ज्वाला धधक-धधक करके प्रज्वलित हो रही हैं, उन बाल चंद्रमा से विभूषित शिव जी को मेरा अनुराग तथा प्रतिक्षण बढ़ता जा रहा है।
धरा-धरेन्द्र-नंदिनीविलास-बन्धु-बन्धुर स्
फुर-द्दिगन्त-सन्ततिप्रमोद-मान-मानसे
कृपा-कटाक्ष-धोरणी-निरुद्ध-दुर्धरापदि
क्वचि-द्दिगम्बरे-मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥
भगवान भोलेनाथ पर्वतराज की पुत्री माता पार्वती के साथ विलास साधन में परम आनंदित तथा चित्त रहते हैं, उनके मानस पटल पर संपूर्ण संसार तथा प्राणी गण वास करते हैं, जिनकी कृपा मात्र से ही सभी कटाक्ष तथा विपत्तियां दूर भाग जाती हैं, ऐसे दिगंबर भगवान भोलेनाथ की आराधना करने से मेरे मन की सर्वत्र जीजे आनंदित हो उठती हैं।
जटा-भुजंग-पिंगल-स्फुरत्फणा-मणिप्रभा
कदम्ब-कुंकुम-द्रवप्रलिप्त-दिग्व-धूमुखे
मदान्ध-सिन्धुर-स्फुरत्त्व-गुत्तरी-यमे-दुरे
मनो विनोदमद्भुतं-बिभर्तु-भूतभर्तरि ॥४॥
मैं ऐसे शिव जी का भक्त हूं जो सभी के प्राण रक्षक हैं, जिनकी जटाओं में सर्प लिपटे हुए हैं तथा सर्पों की फन की मणियों का प्रकाश पीले वर्ण प्रभा समूह रूप केसर के कांति से दिशाओं को प्रकाशित करते हैं, मदमस्त हाथी के हिलते हुए चमड़े का वस्त्र धारण करने से स्निग्ध वर्ण हुए उन भूतनाथ से मेरा चित्त आनंदित हो उठता है।
सहस्रलोचनप्रभृत्य-शेष-लेख-शेखर
प्रसून-धूलि-धोरणी-विधू-सरांघ्रि-पीठभूः
भुजंगराज-मालया-निबद्ध-जाटजूटक:
श्रियै-चिराय-जायतां चकोर-बन्धु-शेखरः ॥५॥
जिनकी मुकुट पर चंद्रमा विराजित है, जिन शिवजी के चरण को इंद्र तथा विष्णु आदि देवता अपने मस्तिष्क के पुष्पों की धूल से रंजीत करते हैं, तथा जिनकी जटाओं पर लाल नाग बंधे हैं, वह चंद्रशेखर हमें हमेशा के लिए संपदा प्रदान करें।
ललाट-चत्वर-ज्वलद्धनंजय-स्फुलिंगभा
निपीत-पंच-सायकं-नमन्नि-लिम्प-नायकम्
सुधा-मयूख-लेखया-विराजमान-शेखरं
महाकपालि-सम्पदे-शिरो-जटाल-मस्तुनः ॥६॥
ऐसे महादेव जिन्होंने अपनी ललाट से उत्पन्न हुई अग्नि के तेज से इन्द्रादि देवताओं का गर्व दहन करके, कामदेव को नष्ट कर डाला था, तथा जो सभी देवों में पूजा, तथा जो चंद्रमा तथा गंगा से सुशोभित है ऐसे देव मुझे सिद्धि प्रदान करें।
कराल-भाल-पट्टिका-धगद्धगद्धग-ज्ज्वल
द्धनंज-याहुतीकृत-प्रचण्डपंच-सायके
धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी-कुचाग्रचित्र-पत्रक
प्रकल्प-नैकशिल्पिनि-त्रिलोचने-रतिर्मम ॥७॥
जिन्होंने अपने विकराल रूप में ललाट धक-धक करने वाली जलती हुई प्रचंड अग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया था, ऐसे शिव जिन्होंने गिरिराज किशोरी के स्तनों पर पत्रभंग रचना करने के एकमात्र कारीगर उन भगवान त्रिलोचन में मेरा मन लगा रहे।
नवीन-मेघ-मण्डली-निरुद्ध-दुर्धर-स्फुरत्
कुहू-निशी-थिनी-तमः प्रबन्ध-बद्ध-कन्धरः
निलिम्प-निर्झरी-धरस्त-नोतु कृत्ति-सिन्धुरः
कला-निधान-बन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥८॥
जिनका कंठ नवीन मेघों की घटनाओं से परिपूर्ण अमावस्य की आंधी की रात के समय फैलते हुए अंधकार के समान कालिमा अंकित है, जो शेर की खाल लपेटे हुए हैं तथा जो इस संपूर्ण संसार का बोल धारण करते हैं ऐसे शिव हम सभी को संपन्नता प्रदान करें।
प्रफुल्ल-नीलपंकज-प्रपंच-कालिमप्रभा
वलम्बि-कण्ठ-कन्दली-रुचिप्रबद्ध-कन्धरम्
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकछिदं तमंतक-च्छिदं भजे ॥९॥
ऐसे मेरे आराध्य देव शिव जिनका कंठ खिले हुए नीलकमल के समूह की शाम प्रभा से विभूषित है, जो कामदेव, त्रिपुर, संसार, हाथी, अंधकासुर तथा यमराज का संहार करने वाले हैं ऐसे मृत्यु को वश में करने वाले शिव को मैं भजता हूं।
अखर्वसर्व-मंग-लाकला-कदंबमंजरी
रस-प्रवाह-माधुरी विजृंभणा-मधुव्रतम्
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्त-कान्ध-कान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥१०॥
जो अभिमान रहित पार्वती जी के कलारूप कदम्ब मंजरी के मकरंद स्रोत की बढ़ती हुई माधुरी के पान करने वाले भँवरे हैं तथा कामदेव, त्रिपुर, भव, दक्षयज्ञ, हाथी, अन्धकासुर और यमराज का भी अंत करनेवाले हैं, उन्हें मैं भजता हूँ।
जयत्व-दभ्र-विभ्र-म-भ्रमद्भुजंग-मश्वस
द्विनिर्गमत्क्रम-स्फुरत्कराल-भाल-हव्यवाट्
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदंग-तुंग-मंगल
ध्वनि-क्रम-प्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ॥११॥
जिनके मस्तक पर अत्यंत वेग से भ्रमण करने वाले सर्पों के प्रफूफकार से ललाट की भयंकर अग्नि क्रमशा धधकती हुई फैल रही है, धीरे धीरे ध्वनि के साथ बजने वाले मंगल स्वर के साथ तांडव नृत्य में लीन शिव जी सर्व प्रकार सुशोभित हो रहे हैं
दृष-द्विचित्र-तल्पयोर्भुजंग-मौक्ति-कस्रजोर्
गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्वि-पक्षपक्षयोः
तृष्णार-विन्द-चक्षुषोः प्रजा-मही-महेन्द्रयोः
समप्रवृतिकः कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥
कठोर पत्थरों एवं कोमल बिछौना में, सर्प एवं मोती की माला में, बहुमूल्य रत्न एवं मिट्टी के टुकड़ों, शत्रु एवं मित्रों, राजा तथा प्रजा, तिनको तथा कमलो पर समान दृष्टि रखने वाले ऐसी शिव की में पूजा करता हूं।
कदा निलिम्प-निर्झरीनिकुंज-कोटरे वसन्
विमुक्त-दुर्मतिः सदा शिरःस्थ-मंजलिं वहन्
विमुक्त-लोल-लोचनो ललाम-भाललग्नकः
शिवेति मंत्र-मुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥१३॥
निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं
परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥१४॥
प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम् ॥१५॥
इमम ही नित्यमेव-मुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धि-मेति-संततम्
हरे गुरौ सुभक्तिमा शुयातिना न्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिंतनम् ॥१६॥
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं
यः शंभुपूजनपरं पठति प्रदोषे
तस्य स्थिरां रथ गजेन्द्र तुरंग युक्तां
लक्ष्मीं सदैवसुमुखिं प्रददाति शंभुः ॥१७॥
कथा
इसके पीछे की कहानी यह है एक बार भोलेनाथ के अनन्य भक्त रावण ने अहंकार में आकर कैलाश को ही उठा लिया था और पूरे पर्वत को लंका की ओर ले जाने लगा, क्योंकि उस समय रावण बहुत अहंकार में था। जिस कारण से महादेव को रावण का अहंकार पसंद नहीं आया और महादेव ने अपने पैर के अंगूठे से कैलाश को दबाया जिससे कैलाश दोबारा अपनी जगह पर आ गया। जिस कारण पर्वत के निचे शिव भक्त रावण का हाथ भी दब गया जिससे रावण जोर-जोर से भोलेनाथ से क्षमा मांगने लग गया “ क्षमा करें क्षमा करिए” हे शंकर-हे शंकर, और शिवजी की स्तुति करने लग गया और यही स्तुति कालांतर में शिव तांडव स्तोत्र कहलाए।
इस शिव तांडव स्तोत्र को सुनकर भगवान भोलेनाथ रावण से इतने प्रसन्न हो गए भोलेनाथ ने रावण को वरदान में सोने की लंका के साथ बुद्धि ज्ञान तथा अजय अमर होने का वरदान भी दे दिया। इसलिए तब से मान्यता है कि इस स्तोत्र का पाठ करने तथा सुनने से ही मात्र सुख समृद्धि तथा धन की प्राप्ति होती है।
माना जाता है कि इस स्तोत्र का पाठ प्रदोष काल या प्रातः काल में करना चाहिए, पाठ का उच्चारण करने से पहले नहा धोकर अच्छे वस्त्र धारण कर लीजिए। इसके बाद भोलेनाथ के चित्र (मूर्ति) के सामने धूप दीप, प्रसाद लगाकर उनका पूजन करें।
शिव तांडव स्तोत्र करने से मानसिक रूप से सुख शांति तथा समृद्धि प्राप्त होती है, साथ में कुंडली में आने वाले कालसर्प दोष तथा पितृदोष से मुक्ति प्राप्त होती है, अगर आप अपनी पूर्ण क्षमता के साथ इस स्तोत्र का पाठ करते हैं तो आपको अपने आसपास शिवजी की मौजूदगी महसूस होगी। शत्रुओं पर विजय प्राप्ति करने के लिए भी शिव तांडव का जाप किया जाता है।
लंकापति रावण द्वारा रचित इस स्तोत्र में कुल 17 श्लोक है। जिसे रावण ने भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए बनाया था।
Shiv tandw
Sir Ji Om!
Sir ji ish 17 Slok mai 14 & 15 no. kye sloko ka varnan aur PDF ya CDR mai nahi hai? Joki Google per dali hui hai? Aisa Kyu hai?
aur sir ji 17 slok yahi complete Shivtandav Strotram hai kya?
Kyki ye Shivtandav Strotram maine kanttasth kar liya hai? Laken Ush wale Shivtandav Strotram mai ye do Slok 14 aur 15 nahi thye?
Kya Ushmai Sye Hatye gye hai ya pher Jo Apki Strotram pdf hai? Yahi complete Shivtandav Strotram hai? Plz Answer for me??
Sir Ji,
Kyki yadi mai ish uncomplete Shivtandav Strotram (yani ki jish mai 14 & 15 slok nahi hai) ko Bholyenath kye samne bolta hoon to mai dund ka bhagidaar hoon jaunga kyaaa?
Sir ji Shud aur Complete Dashanand Dwara Rachit Shivtandav Strotram Konsi hai? Mujhe Plz Batyeee??