Sare jahan se acha Hindustan Hamara Lyrics PDF download in Hindi सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा गीत भारत का सुप्रसिद्ध गीत है जो हमारे प्यारे भारत की खूबियों को दर्शाता है है। इसे सर्वप्रथम मोहम्मद इकबाल द्वारा लिखा तथा गाय गया था।
वैसे तो भारत में देशभक्ति पर बहुत सारे संगीत बने हुए हैं लेकिन कुछ ऐसे संगीत हैं जिनको सुनते ही आम लोगों में देशभक्ति की भावना का संचार उमड़ उठता है, क्योंकि इन गानों में ऐसे जादू के बोल होते हैं जिनसे हमारे तन मन में जोस भर आता है, उनमें से ही एक गीत सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा अक्सर 26 जनवरी तथा 15 अगस्त के शुभ अवसर पर गाया जाता है।
सारे जहां से अच्छा या तराना-ए-हिन्दी उर्दू भाषा में लिखा गया देश के प्रति प्रेम की एक ग़ज़ल है, जिसको सुनकर ही भारत वासियों में देशभक्ति की भावना जागृत हो जाती है। यह गजल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय अंग्रेजों के राज के विरोध का प्रतीक बना और आज इसे देशभक्ति के गीत के रूप में भारत के अनेक मौकों पर गाया जाता है।
इसे अनौपचारिक रूप से भारत का राष्ट्रीय गीत का दर्जा भी प्राप्त हुआ है। तथा इस गीत को प्रसिद्ध मोहम्मद इकबाल द्वारा 1905 में लिखा गया तथा सबसे पहले सरकारी कॉलेज लाहौर में पढ़कर सुनाया था। इस गजल में हिंदुस्तान के प्रति तारीफ की भावना दिखती है तथा विभिन्न समुदायों के लोगों के बीच भाईचारे की भावना को प्रोत्साहित करता है।
सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा Lyrics
सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा।
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिस्ताँ हमारा॥
ग़ुरबत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में।
समझो वहीं हमें भी, दिल हो जहाँ हमारा॥ सारे…
परबत वो सबसे ऊँचा, हमसाया आसमाँ का।
वो संतरी हमारा, वो पासबाँ हमारा॥ सारे…
गोदी में खेलती हैं, उसकी हज़ारों नदियाँ।
गुलशन है जिनके दम से, रश्क-ए-जिनाँ हमारा॥ सारे….
ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा! वो दिन है याद तुझको।
उतरा तेरे किनारे, जब कारवाँ हमारा॥ सारे…
मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना।
हिन्दी हैं हम वतन हैं, हिन्दोस्ताँ हमारा॥ सारे…
यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा, सब मिट गए जहाँ से।
अब तक मगर है बाक़ी, नाम-ओ-निशाँ हमारा॥ सारे…
कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी।
सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-ज़माँ हमारा॥ सारे…
‘इक़बाल’ कोई महरम, अपना नहीं जहाँ में।
मालूम क्या किसी को, दर्द-ए-निहाँ हमारा॥ सारे…
Sare Jahan Se Acha Lyrics
Sare Jahan Se Accha Hindostan Hamara
Hum Bulbulain Hai Iss Ki Yeh Gulsitan Hamara
Ghurbat Men Hon Agar Ham Rahta Hai Dil Vatan Men
Samjho Vahin Hamen Bhi Dil Hain Jahan Hamara
Parbat Voh Sab Se Uncha Hamsaya Asman Ka
Voh Santari Hamara Voh Pasban Hamara
Godi Men Khelti Hain Is Ki Hazaron Nadiya
Gulshan Hai Jin Ke Dam Se Rashk-e-janan Hamara
Aye Ab Raud Ganga Voh Din Hen Yad Tujhko
Utara Tere Kinare Jab Karvan Hamara
Mazhab Nahin Sikhata Apas Men Bayr Rakhna
Hindi Hai Ham Vatan Hai Hindostan Hamara
Yunan O Misr O Roma Sab Mil Gaye Jahan Se
Ab Tak Magar Hai Baqi Nam O Nishan Hamara
Kuch Bat Hai Keh Hasti Milati Nahin Hamari
Sadiyon Raha Hai Dushman Daur E Zaman Hamara
Iqbal Koi Meharam Apna Nahin Jahan Men
Malum Kya Kisi Ko Dard E Nihan Hamara
Sare Jahan Se Accha Hindostan Hamara
Ham Bulbulain Hai Is Ki Yeh Gulsitan Hamara
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मोहम्मद इकबाल उस समय कॉलेज में एक लेक्चरर के रूप में कार्यरत है जब एक छात्र लाला हरदयाल द्वारा उन्हें एक समारोह की अध्यक्षता के लिए आमंत्रित किया। ताकि वह बच्चों को संबोधित कर सके उन्होंने भाषण देने की बजाय सारे जहां से अच्छा गाया।
यह गीत, हिंदुस्तान की भूमि के लिए तड़प और लगाव को मूर्त रूप देने के अलावा, “सांस्कृतिक स्मृति” को व्यक्त करता है और एक सुंदर गुण रखता है। 1905 में, 27 वर्षीय इकबाल ने उपमहाद्वीप के भविष्य के समाज को बहुलवादी और मिश्रित हिंदू-मुस्लिम संस्कृति दोनों के रूप में देखा। उस वर्ष बाद में वह तीन साल के प्रवास के लिए यूरोप के लिए रवाना हुए, जो उन्हें एक इस्लामी दार्शनिक और भविष्य के इस्लामी समाज के दूरदर्शी के रूप में बदलना था।
इस गीत को प्रसिद्ध मोहम्मद इकबाल द्वारा 1905 में लिखा गया
गीत को प्रसिद्ध मोहम्मद इकबाल द्वारा सबसे पहले सरकारी कॉलेज लाहौर में पढ़कर सुनाया था।