भारत में त्योहार मनाए जाते हैं जिममें से एक जीवित्पुत्रिका या जितिया व्रत (Jitiya Vrat) भी है हिंदू धर्म के अनुसार हर साल जितिया व्रत कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाते हैं। इसे जिउतिया और जितिया व्रत भी कहा जाता है। यह प्रमुख रूप से पूर्वांचल (पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड) में महिलाओं द्वारा पुत्र प्राप्ति या पुत्रों की दीर्घायु के लिए निर्जला उपवास रखा जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने पुत्र दीर्घायु होते हैं। साथ ही घर परिवार में सुख समृद्धि आती है। निचे हम सभी भक्तों के जितिया व्रत कथा PDF Download, पूजा विधि, आरती प्रदान करने वाले है।
जितिया व्रत कथा (Jitiya Vrat Katha)
कथा-१
किसी जंगल में नदी के पास हिमालय में एक गरुड़ और एक मादा लोमड़ी निवास करते थे। उन्होंने एक बार कुछ महिलाओं को उपवास व पूजा करते हुए देखा और खुद भी ऐसा करने की कामना की। लेकिन उपवास के दौरान लोमड़ी भूख के कारण एक मरे हुए जानवर को खा लिया। वहीं दूसरी ओर चील ने पूरे समर्पण के साथ इस व्रत का पालन किया। परिणाम स्वरूप लोमड़ी द्वारा पैदा हुए बच्चे कुछ दिन बाद मर गए, वहीं चील के सभी पुत्र जीवित रहे। बदले की भावना में लोमड़ी ने चील के बच्चों को कई बार मारने का प्रयास भी किया लेकिन वह इसमें सफल ना हो पाई। बाद में चील ने लोमड़ी को अपने पूर्व जन्म के जितिया व्रत के बारे में बताया। इस व्रत को लेकर सियार ने भी संतान प्राप्त किया। इस तरह से यह व्रत संतान प्राप्ति के लिए प्रसिद्ध हुआ।
कथा-२
कथा के अनुसार जीमूतवाहन गंधर्व के बुद्धिमान राजाओं में से एक थे। लेकिन वह शासक बनने से संतुष्ट नहीं थे। जिसके चलते उन्होंने अपने भाइयों को अपने राज्य की सभी जिम्मेदारियां दे दी और खुद अपने पिता की सेवा के लिए जंगल में चले गए। उन्हें एक दिन भटकती हुई बुढ़िया विलाप करते हुए मिलती हैं। उन्होंने बुढ़िया से रोने का कारण पूछा। जिस पर बुढ़िया ने उत्तर दिया कि वह नागवंशी परिवार से हैं और उनका एक छोटा बेटा है। एक सपथ के अनुसार हर दिन एक नागवंशी को पक्षीराज गरुड़ को चढ़ाया जाता है और आज उसके बेटे का नंबर है। यह सुनकर जीमूतवाहन बुढ़िया को आश्वासन देते है की वह उनके बेटे को जीवित वापस लेकर आएंगे।उसके बाद वह खुद ही गरुड़ का चारा बनने के लिए चट्टान पर लेट जाते हैं। जब गरूर आता है तो अपनी उंगलियों से लाल कपड़े में ढके हुए जीमूतवाहन को पकड़कर चट्टान पड़ जाता है। लेकिन गरुड़ को हैरानी होती है कि कपड़े में लेटा हुआ उसका शिकार कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है। और गरुड़ जीमूतवाहन को उनके बारे में पूछता है। और सचाई सुनने के बाद गरुड़ उनकी वीरता और परोपकार से प्रसन्न होकर वादा करते हैं कि वह आज से किसी भी सांप का बलिदान नहीं देगा। मान्यता है कि तभी से संतान की लंबी उम्र और कल्याण के लिए जितिया व्रत को मनाया जाता है।
जितिया व्रत की आरती
ओम जय कश्यप नन्दन, प्रभु जय अदिति नन्दन।
त्रिभुवन तिमिर निकंदन, भक्त हृदय चन्दन॥
ओम जय कश्यप..
सप्त अश्वरथ राजित, एक चक्रधारी।
दु:खहारी, सुखकारी, मानस मलहारी॥
ओम जय कश्यप..
सुर मुनि भूसुर वन्दित, विमल विभवशाली।
अघ-दल-दलन दिवाकर, दिव्य किरण माली॥
ओम जय कश्यप..
सकल सुकर्म प्रसविता, सविता शुभकारी।
विश्व विलोचन मोचन, भव-बंधन भारी॥
ओम जय कश्यप..
कमल समूह विकासक, नाशक त्रय तापा।
सेवत सहज हरत अति, मनसिज संतापा॥
ओम जय कश्यप..नेत्र व्याधि हर सुरवर, भू-पीड़ा हारी।
वृष्टि विमोचन संतत, परहित व्रतधारी॥
ओम जय कश्यप..
जितिया व्रत पूजा विधि
- जितिया व्रत के दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करके पूजा करती हैं।
- स्नान करने के पश्चात भगवान सूर्य की प्रतिमा को धूप दीप आदि करके आरती करें और भोग लगाएं।
- मिट्टी और गाय के गोबर से चील व सियारिन की मूर्ति बनाएं।
- कुशा द्वारा निर्मित जीमूतवाहन की प्रतिमा को धूप दीप व चावल व पुष्प को अर्पित करें।
- विधि- विधान से पूजा करें और व्रत की कथा अवश्य सुनें।
- व्रत पारण के बाद दान जरूर करें।
ध्यान रखने योग्य बातें
कहीं-कहीं मान्यता है कि जीवित्पुत्रिका व्रत आरंभ करने से पहले नोनी का साग खाया जाता है। यह इसलिए कि नोनी के साग में कैल्शियम और आयरन पाया जाता है और जिससे व्रत लेने वाली महिला के शरीर में पोषक तत्वों की कमी नहीं होती।
व्रत पूजा करने से पहले महिलाएं जितिया रंग का धागा गले में पहनती हैं कई बार महिलाएं जितिया का लॉकेट भी धारण करती हैं।
पूजा के दौरान सरसों का तेल और खल चढ़ाया जाता है। जीवित्पुत्रिका पारण के बाद यह तेल बच्चों के सिर पर आशीर्वाद के तौर पर लगाने की परंपरा भी है।