धनतेरस कथा, पूजा विधि | Dhanteras Katha, Puja Vidhi, Samagri PDF

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धनतेरस को कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है इस दिन समुद्र मंथन के समय भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे इसीलिए इस दिन को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है.

इसके अलावा भारत सरकार ने धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने का भी निर्णय लिया हैं । धनवंतरी के उत्पन्न होने के 2 दिनों पश्चात ही देवी लक्ष्मी जी प्रकट हुई इसीलिए धनतेरस कि 2 दिनों बाद ही दिवाली का त्यौहार मनाया जाता है.

धनतेरस के भगवान धनवंतरी, मां लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की पूजा की जाती है। मान्यताओं के अनुसार धनतेरस पर विधि-विधान से पूजा करने पर आरोग्य और सुख-समृद्धि तथा पूरे साल घर में मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।

धनतेरस की कथा (Dhanteras Ki Katha)

धर्म ग्रंथों के अनुसार, एक बार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण स्वर्ग श्रीहीन (ऐश्वर्य, धन, वैभव आदि) हो गया। तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने उन्हें असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने का उपाय बताया और ये भी बताया कि समुद्र मंथन को अमृत निकलेगा, जिसे ग्रहण कर तुम अमर हो जाओगे साथ ही स्वर्ग की संपदा भी पुन: लौट आएगी। यह बात जब देवताओं ने असुरों के राजा बलि को बताई तो वे भी समुद्र मंथन के लिए तैयार हो गए। वासुकि नाग की नेती बनाई गई और मंदराचल पर्वत की सहायता से समुद्र को मथा गया। समुद्र मंथन से उच्चैश्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी, लक्ष्मी, भगवान धन्वंतरि सहित 14 रत्न निकले। भगवान धन्वंतरि के हाथ में अमृत कलश देखकर देवता और असुरों में लड़ाई छिड़ गई। तब भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लेकर छल से देवताओं को अमृत पिला दिया और असुर उससे वंचित रह गए।

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शास्त्रों के अनुसार इसी दिन भगवान धन्वंतरी का जन्म हुआ था इसीलिए इसे धनतेरस त्योहार के रूप में मनाया जाता है क्योंकि इस दिन भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुई थी इसीलिए इस दिन बर्तन खरीदने की परंपरा शुरू हुई
कहा जाता है जब भगवान धन्वंतरी हाथों में स्वर्ण कलश लेकर सागर मंथन से उत्पन्न हुई उसके उपरांत धन मंत्री ने कलर से भरे हुए अमृत को देवताओं को देकर उन्हें अमर बना दिया था ।

हिंदू शास्त्रों के अनुसार भगवान धनवंतरी देवताओं के वैद्य माने जाते हैं इनकी भक्ति करने से आप सदैव निरोगी रहते हैं मान्यता है कि भगवान धनवंतरी विष्णु के अंशावतार हैं। साथ ही ऐसा भी माना जाता है कि संसार में चिकित्सा विज्ञान के विस्तार और प्रसार के लिए ही भगवान विष्णु ने धनवंतरी का अवतार लिया था ।

धनतेरस पूजा विधि (Dhanteras Puja Vidhi)

  • धनतेरस पूजा की शुरुआत संध्या के समय शुभ मुहूर्त में होती है
  • सबसे पहले भगवान धन्वंतरी मां लक्ष्मी तथा कुबेर जी की तस्वीर या प्रतिमा को स्थापित कर लीजिए
  • उसके बाद घी का दीपक प्रज्वलित कर दीजिए
  • अब आपने इस दिन जिस भी धातु, बर्तन अथवा ज्वेलरी की खरीदारी की है, उसे चौकी पर रखें।
  • उसके उपरांत चंदन से तिलक लगाएं तथा पूजा को शुरू कर लीजिए
  • पूजा के समय कुबेर जी के मंत्र “ॐ ह्रीं कुबेराय नमः” का जाप करें तथा धन्वंतरी स्त्रोत का पाठ करें
  • उसके बाद भगवान धन्वंतरी को पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं
  • तथा कुबेर जी को सफेद मिठाई अर्पित
  • उसके बाद मां लक्ष्मी और गणेश भगवान जी की पूजा करें
  • मां लक्ष्मी के समक्ष पी दीपक जलाएं तथा मां लक्ष्मी को तिलक लगाएं
  • उसके बाद मां लक्ष्मी को कमलगट्टे अर्पित करें
  • भगवान गणेश और मां लक्ष्मी को फूल तथा फल अर्पित करें
  • उसके बाद सभी को मिष्ठान का भोग लगाएं और आरती की भी शुरुआत करें
  • उसके उपरांत सभी की पूजा करें तथा प्रार्थना करें कि हमारे जीवन में सदैव सुख समृद्धि तथा हम सदैव निरोगी रहे ।
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धनतेरस पर यम के नाम का दीप अवश्य जलाएं इसके लिए सबसे पहले एक पटरी पर स्वास्तिक का सिंह ने बनाएं तथा मिट्टी का दीपक प्रज्वलित करें दीपक पर तिलक लगाएं अब चावल फूल तथा चीनी अर्पित करें उसके उपरांत घर के लोगों का तिलक करें तथा दीपक की बाती को दक्षिण दिशा की ओर करके दरवाजे पर रख लीजिए क्योंकि दक्षिण दिशा को यम की दिशा माना गया है

धनतेरस पूजा सामग्री (Dhanteras Puja Samagri List)

  • भगवान धनतेरस, माँ लक्ष्मी तथा कुबेर की प्रतिमा/ तस्वीर
  • 21 पूरे कमल बीज
  • मणि पत्थर के 5 प्रकार
  • 5 सुपारी
  • लक्ष्मी–गणेश के सिक्के (10 ग्राम या अधिक)
  • अगरबत्ती
  • चूड़ी
  • तुलसी पत्र
  • नारियल
  • सिक्के
  • काजल
  • दहीशरीफा
  • पान
  • गंगा जल
  • माला
  • हल्दी
  • चंदन
  • लौंग
  • फूल
  • चावल
  • रोली
  • शहद
  • कपूर
  • धूप

भगवान धन्वंतरि की आरती (Dhanvantari Aarti)

जय धन्वंतरि देवा, जय धन्वंतरि जी देवा ।
जरा-रोग से पीड़ित, जन-जन सुख देवा ।।
जय धन्वं….।।

तुम समुद्र से निकले, अमृत कलश लिए ।
देवासुर के संकट आकर दूर किए ।।
जय धन्वं….।।

आयुर्वेद बनाया, जग में फैलाया ।
सदा स्वस्थ रहने का, साधन बतलाया ।।
जय धन्वं…।।

भुजा चार अति सुंदर, शंख सुधा धारी ।
आयुर्वेद वनस्पति से शोभा भारी ।।
जय धन्वं…।।

तुम को जो नित ध्यावे, रोग नहीं आवे ।
असाध्य रोग भी उसका, निश्चय मिट जावे ।।
जय धन्वं….।।

हाथ जोड़कर प्रभुजी, दास खड़ा तेरा ।
वैद्य-समाज तुम्हारे चरणों का घेरा ।।
जय धन्वं…।।

धन्वंतरिजी की आरती जो कोई नर गावे ।
रोग-शोक न आए, सुख-समृद्धि पावे ।।
जय धन्वं…।।

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