सिद्ध कुंजिका स्तोत्र (Siddha Kunjika Stotram PDF) देवी माहात्म्य के अंतर्गत एक परम कल्याणकारी स्तोत्र है यह स्तोत्र रुद्रयामल तंत्र के गौरी तंत्र भाग से लिया गया है।
दुर्गा सप्तशती में सिद्ध कुंजिका स्तोत्रम का उल्लेख मिलता है, कुंजिका स्तोत्र को भगवान महादेव द्वारा माता पार्वती को समझाया गया था। इस स्तोत्र का पाठ करने से मनुष्य जीवन में आ रही समस्याएं एवं विघ्न दूर हो जाते हैं। जो भी मनुष्य इस पाठ का विषम परिस्थितियों में वाचन करता है उसके समस्त दुखों का अंत हो जाता है।
इस स्तोत्र के मूल मंत्र “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” के साथ प्रारंभ होते हैं। कुंजिका का अर्थ होता है चाबी अर्थात कुंजिका स्तोत्र दुर्गा सप्तशती की शक्ति को जागृत करता है जोकि महादेव के द्वारा गुप्त कर दी गई है। इस स्तोत्र के पाठ के दौरान किसी और जब या पूजा की आवश्यकता नहीं होती, कुंजिका स्तोत्र के पाठ से ही सभी जाप सिद्ध हो जाते हैं। कुंजिका स्तोत्र में आए बीज मंत्रों का अर्थ जानना असंभव है और ना ही अति आवश्यक अर्थात केवल जप ही पर्याप्त होता है।
Siddha kunjika stotram सिद्धकुंजिकास्तोत्र
शिवउवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत् ।।१।।
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ।।२।।
कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ।।३।।
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तंभोच्चाटनादिकम।
पाठमात्रेण संसिध्येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ।।४।।
अथ मंत्रः
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ।।
। इति मंत्रः।
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ।।१।।
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि ।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।।२।।
ऐंकारी सृष्टिरुपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका ।
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोस्तु ते।।३।।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी ।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि ।।४।।
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी ।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु ।।५।।
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी ।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ।।६।।
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं ।
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा।।७।।
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा ।
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिं कुरुष्व मे।।८।।
इदं तु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे ।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ।।
यस्तु कुंजिकया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत् ।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा ।।
इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुंजिकास्तोत्रं सम्पूर्णम्।
।। ॐ तत्सत्।।
स्तोत्र के लाभ
- इस स्तोत्र का पाठ करने से सभी प्रकार की समस्याएं तथा समाधान दूर हो जाते हैं।
- यह चमत्कारी तथा लाभकारी पाठ है।
- इस पाठ पाठ को करने से ग्रहों में उत्पन्न दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है।
- यह मनुष्य के भीतर सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है।
पाठ की विधि
- इस स्तोत्र का पाठ करने से पहले आप स्नान करके अच्छे कपड़े पहन ले
- पाठ के दौरान लाल रंग के वस्त्र को पहनना शुभ माना जाता है
- घर के पूजा गृह में एक चौकी रखें और उस पर लाल कपड़ा बिछाए
- अब उसमें मां दुर्गा की प्रतिमा रखें
- तिलक लगाएं और उनके आगे घी का दीपक जलाएं
- दुर्गा माता के आगे लाल रंग के फूल चढ़ाएं
- इस पाठ को रात्रि के समय भी किया जा सकता है
pls assist in getting pdf downloadable link. I request for the link.